Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 592
________________ 570 सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ क्र० संवत् श्राविका नाम वंश/गोत्र | संदर्भ ग्रंथ प्रेरक/प्रतिष्ठापक गच्छ / आचार्य श्रीसुविहितसूरि आदि 166 |1563 | रत्नाई, लकू | श्री श्री ज्ञा. | भ. श्री श्रीधर्मनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 181 167 | 1598 करमी, देवलदे, सोभगिणि ऊके आंबलिया | तपा. विजयदानसूरि भ. श्री शांतिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 गोत्र 168 1520 धांधलदे नाणावाल श्री धनेष्वरसूरि भ. श्री सुविधिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 183 169 11677 नयणी तपा. श्री विजयदेवसूरि 183 भ. श्री मुतिसुव्रत जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 भ. श्री पार्श्वनाथ जी । जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 1549 टबकू वल्हादे श्री श्री ज्ञा. | 184 बृद्धतपा. श्री उदयसागरसूरि गुणसुंदरसूरि | 1521 | चामारसिरि, सतिादे ओसज्ञा. गांधी भ. श्री धर्मनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 184 गोत्र 172 1510 रत्नू, कर्माई हुंबड ज्ञा. भ. श्री चंद्रप्रभस्वामी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 185 वृद्धतपा. श्री विजय धर्मसूरि श्री श्री ज्ञा. 173 |1516 | वरजू, रमाई 174 1578 धर्मिणि, गगांदे 175 | 1509 | रत्नीसुराभूसु श्री श्री ज्ञा. आगम, सिंहदन्तसूरि भ. श्री वासुपूज्य जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 185 वृद्धतपा. श्री धनरत्नसूरि भ. श्री सुविधिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 185 | पूर्णिमा. श्री गुणसमुद्रसूरि | भ. श्री शांतिनाथ चतु. जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 185 श्री श्री ज्ञा. 176 | 1531 | गूजरी, मचकू प्रा. ज्ञा. तपा. श्री लक्ष्मीसागरसूरि जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 185 भ. श्री मुतिसुव्रतनाथ जी प्रा. ज्ञा. तपा. श्रीरत्नषेखरसूरि भ. श्री आदिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 185 177 | | 1510 सजूणि, रामति 1781677 मेघाई, मरघादे ओ. ज्ञा. भ. श्री विमलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 186 179 1532 रामति, डाही श्री ज्ञा. तपा. श्रीरविजयदेवसूरि पूर्णिमा. साधुसुंदरसूरि तपा. विजयरत्नसूरि तपा. श्रीविजयदेवसूरि 180 प्रा. ज्ञा. 186 | 1529 | मानू राजू 1877 तेजलदे, धाई 181 ओस ज्ञा. 186 भ. श्री विमलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 भ. श्री सुपार्श्वनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 । भ. श्री | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 सुमतिनाथचतुर्मुख जी भ. श्री अभिनंदन जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 भ. श्री कुंथुनाथ जी । जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | भ. श्री अनंतनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 182 | 1518 | माकू ओ. ज्ञा. | 187 183 1507 | रूपाई, सिंगारदेवी, ह' ऊ. ज्ञा. धर्मघोष श्री साधुरत्नसूरि तपा. रत्नषेखरसूरि तपा. रत्नषेखरसूरि 187 1841518 | सीतादे, वरजू, रामति प्रा. ज्ञा. 187 185 1571 तारूसु, माणिकिसारू ऊके. ज्ञा. सुविहित सुविहितसूरि 187 भ. श्री मुनिसुव्रत चतु. | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 जी श्री श्री ज्ञा. पिप्पल. सर्वसूरि भ. श्री कुंथुनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 188 186 | 1529 | टीबू, कुयरि, कमली 187 | 1508 | पोमादे,कपूरी, रामति 1800 ललतादे ऊके. तपाा. रत्नषेखसूरि | 188 भ. श्री सुविधिनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 भ. श्री शांतिनाथ जी । जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 188 | 188 ओस ज्ञा. चोपड़ा | उपाध्याय श्री गोत्र विधासागरसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,

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