Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 609
________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास 587 क्र० संवत प्राविका नाम वंश/गोत्र संदर्भ ग्रंथ प्रेरक/प्रतिष्ठापक | प्रतिमा निर्माण गच्छ / आचार्य आदि 585 | 1505 | राजूसु, रामति 586 | 1537 | नायकदे, सूलेसरि 587 | 1573 | भूवदे, नाथी, मरधी ऊकेष ज्ञा. पूर्णिमा गुणसमुद्रसूरि भ. श्री संभवनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 148 तपा, श्री लक्ष्मीसागर सूरि भ. श्रीशांतिनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 तपा. श्री सौभाग्यसूरि भ. श्री श्रेयांसनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 149 हुंबड ज्ञा. सुरगोत्र 588 1520 | अरघू. मीरू श्री ज्ञा. श्री विमलसूरि जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 149 भ. श्री चंद्रप्रभस्वामी जी श्री श्री ज्ञा. श्री श्री ज्ञा. 589 | 1529 | षाणी, फालूसु 590 1520 हरवू 591 1581 | सषीसु, कामलदे 592 | 1518 | राणी, लाषणदे श्री श्री ज्ञा. श्री श्री ज्ञा. 593 श्री श्री ज्ञा. 1531 | पोमादे, पाती | 1531 कुतिगदे, कर्माई 594 ओएसवंष 595 श्री श्री ज्ञा. 1548 | धारूसु, वारूसु, | 1531 | डाही, पती 596 प्रा. ज्ञा. 597 1506 | भरमादे, सातदे 152 598 | 1563 | भाची, जईतलदे ऊकेष. ज्ञा. 1508 अहविदे, चमक, देल्हागदे | प्रा. ज्ञा. पुण्यरत्नसूरि | भ. श्री धर्मनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 150 आगम. गुणरत्नसूरि भ. श्री संभवनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 150 आणंदसागरसूरि | भ. श्रीशांतिनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 150 आगम, देवरत्नसूरि भ. श्री संभवनाथ चतु. | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 151 | जी नागेंद्र श्री हेमरत्नसूरि भ. श्रीशीतलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 151 अंचल श्री जयकेसरीसूरि | भ. श्री संभवनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 आगम. जिनचंद्रसूरि भ. श्रीशीतलनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 152 तपा. सुमतिसुंदरसूरि भ. श्री नमिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 152 ब्रह्माण. श्री उदयप्रभसूरि | भ. श्री आदिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 तपा. श्री हेमविमलसूरि भ. श्री वासुपूज्य जी । जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 153 आगम. श्री सिंहदनसूरि भ. श्री विमलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 153 तपा. लक्ष्मीसागरसूरि भ. श्री पद्मप्रभु जी |जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 153 | तपा. श्री रत्नषेखरसूरि भ. श्रीशांतिनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 153 तपा. श्री लक्ष्मीसागरसूरि | भ. श्रीशीतलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 153 | पिप्पल धर्मसागरसूरि भ. श्री विमलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 बडगच्छ उदयसिंहसूरि भ. श्री पार्श्वनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 154 वृद्धतपा. विजयरत्नसूरि | भ. श्री वासुपूज्य जी |जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 154 | संडेर श्री ईसरसूरि भ. श्री श्रेयांसचतु. जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 पूर्णिमा. पूर्णचंद्रसूरि भ. श्री सुमतिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 154 तपा. श्री लक्ष्मीसागरसूरि | भ. श्री पद्मप्रभ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 155 | तपा. विजयसेनसूरि भ. श्री चंद्रप्रभस्वामी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 599 600 11524 | करमी, मरगदि प्रा. ज्ञा. 601 | 1511 | लाडी, चमकू, लीलादे ऊकष 602 1534 | मालहणदेवी ऊकेष 803|1531 माणिकदे, बडघी श्री श्री ज्ञा. प्रा. ज्ञा. ओस. ज्ञा. 6041639 | जीऊ 6051516 | फदकू, सोही 606 | 1517 | मेघू, चंपाई 607 1506 कामलदे, जीवणि 608 | 1528 | अरघू, गुरी 609 | 1662 | वइजलदे, तेजलदे श्री. श्री. ज्ञा. डीसा. ज्ञा. प्रा. ज्ञा. | 155 जी 610 प्रा. ज्ञा. भ. श्री अनंतनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 155 1504 | मेघू, साऊ 1563 | रूपाई, कपू. विमलादे | तपा. जयचंद्रसूरि | अंचल. भावसागरसूरि 611 श्री श्रीवंष भ. श्री कुंथुनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 155 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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