Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 611
________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास 589 क्र० संवत् श्राविका नाम वंश/गोत्र | 163 639 | 1573 | मटकी, इंद्राणी 640 | 1548 | हीरादे, कत्थाई, रूपाई श्री श्री वंष ओसवंष । 164 | प्रेरक/प्रतिष्ठापक प्रतिमा निर्माण | संदर्भ ग्रंथ गच्छ / आचार्य आदि सुविहितसूरि भ. श्री आदिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 भावसूरि भ. श्री अभिनंदन जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 नाथ जी | खरतर श्री जिनचंद्रसूरि | भ. श्री संभवनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | अंचल. सिद्धांतसागरसूरि | भ. श्री सुविधिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 आगम सिंहदत्तसूरि भ. श्रीशांतिनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | तपा. श्री विजयसेनसूरि | भ. श्री आदिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 641 . ऊकेष वंष 164 1528 | मणकी, डाही 1553 कर्माई, मिरगाई 642 ओस वंष 164 643 प्रा. ज्ञा. 164 1508 | अमकू सोहामिणि, तेजलदे 644 1651 ओस. आतूरागोत्र 645 166 तेजलदे | अमरादे, रामति तपा. श्री विजयसेनसूरि | भ. श्री पार्श्वनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | श्री कक्कसूरि भ. श्री सुमतिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 646 | 1525 चिंचटगोत्र | 166 6471536 | नाई, राणी श्री श्री ज्ञा. | 166 648 श्री श्री ज्ञा. 167 649 प्रा. ज्ञा. 168 650 प्रा. ज्ञा. | श्री वीरसूरि | भ. श्री सुमतिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | श्री ब्रह्माण | भ. श्री कुंथुनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 तपा. श्री रत्नषेखरसूरि भ. श्री धर्मनाथ जी । जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 श्री हेमविमलसूरि | भ. श्री आदिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | आगम देवरत्नसूरि भ. श्री सुविधिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 खरतर. जिनचंद्रसूरि भ. श्री श्रेयांसनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | उपकेष श्री देवगुप्तिसूरि | भ. श्री अभिनंदन जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 1528 | माणिकिदे | 1513 | सिरी, पूरी | 1568 | मटकू, वलहादे 1525 | पोमी, जीविणि 1528 | रत्नाई, राजगेई 11530 | मूजी, सोनलदे,कुंअरि 168 •651 श्री श्री ज्ञा. 652 प्रा. वंष 168 169 उप. ज्ञा. गोवर्द्धनगोत्र 654 | 1584 षीमाई, वीराई खरतर जिनमाणिक्यसूरि भ. श्री विमलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 169 उकेष कांकरियागोत्र | 1536 | वीजलदे, माणिकि 656 | 1529 | लीलू, हीराई 657 | 1713 | सषाई, सोनाई, षीमाई श्री श्री ज्ञा. श्री ज्ञा. ओस ज्ञा. 658 | 1515 | मालहणदे श्री ज्ञा. 1519 | वुलदे श्री ज्ञा. 659 660 | भट्टा. श्री बुद्धिसागरसूरि | भ. श्री विमलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 170 | आगमदेवरत्नसूरि | भ. श्री अभिनंदन जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 170 श्री विजयप्रभुसूरि जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 170 पूर्णिमासाधुरत्नसूरि भ. श्रीशीतलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 171 | नागेंद्र श्री गुणदेवसूरि भ. श्री चंद्रप्रभु जी |जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 171 वृद्धतपा. श्री | भ. श्री कुंथुनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 171 उदयसागरसूरि श्री सूरि | भ. श्री आदिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा. 2 171 तपा. श्री लक्ष्मीसागर भ. श्री धर्मनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 171 1553 | सिंगारदे, मटकू, गुरदे । श्री श्री ज्ञा. 661 | 1525 | रमकू दूबी प्रा. ज्ञा. 662 1535 अमकू मऊकू डीसा ज्ञा. सूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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