Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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584
सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ
क्र०
संवत् ।
श्राविका नाम
वंश/गोत्र
संदर्भ ग्रंथ
| प्रेरक/प्रतिष्ठापक
गच्छ / आचार्य
प्रतिमा निर्माण
आदि
511
1547 | कउतिगदे
ऊकेष ज्ञा.
भ. श्री आदिनाथ जी
जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2
131
तपा. सुमतिसाधुसूरि खरतर, जिनचंद्रसूरि
512
1532 | धरण
भ. श्रीशांतिनाथ जी
जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2
1131
श्री ज्ञा. नाचणगोत्र
513
प्रा. ज्ञा.
131
1528 | अरघू 1552 | कुतिगदेवी
"514
श्री ज्ञा.
तपा, श्री लक्ष्मीसागरसूरि | भ. श्रीशीतलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 खरतर. श्रीजिनहर्षसूरि भ. श्री सुविधिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 मलधारि गुणसुंदरसूरि भ. श्री आदिजिन जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2
| 132
515
1511 भोली
132
ओएसवंष बाडलियागोत्र
प्रा. ज्ञा.
132
5161589 | गौरी 517 | 1508 | हासू, कूअरि 518 | 1532 | रूपाई
श्री.ज्ञा.
द्विवंदनीक कक्कसूरि भ. श्री संभवनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | तपा. श्री विजयधर्मसूरि | भ. श्री सुमतिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 धर्मघोष. श्री साधुरत्नसूरि | भ. श्रीशांतिनाथ जी |जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2
132
132
ऊकेष ज्ञा. खाटडगोत्र
ऊकेष
132
ओस.ज्ञा.
133
519 | 1521 | सारू, मटू 520 | 1560 | संपूरी,गंगादे । 521
1677 | वलहादे 522 | 1520 | टीबू, वनादे 523 1122 रंगादे, वलहादे, वइजलदे
ओस ज्ञा.
तपा. श्री लक्ष्मीसागरसूरि | भ. श्री पार्श्वनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 कक्कसूरि
भ. श्री कुथुनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 तपा. विजयदेवसूरि भ. श्री संभवनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2
श्री जिनरत्नसूरि भ. श्री अजितनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | खरतर जिनचंद्रसूरि
जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2
133
ओस ज्ञा.
133
133
ओसवंष घंखवालगोत्र | प्रा. ज्ञा. डीसा. ज्ञा.
52411524 | कुतिगदे,भावलदे आदि 525 | 150 | पाणी, सोही
| तपा. श्री लक्ष्मीसागरसूरि | भ. श्री आदिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 134 तपा. श्री जयचंद्रसूरि भ. श्री आदिनाथ चतु. | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 134
| जी वृद्धतपा. चरित्रसागरसूरि भ. श्रीशांतिनाथ जी । जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 134 |
ओस. ज्ञा.
11565 | लीली, चांदू, इंद्राणी,
सोमाई
527
1644 ठकराणी, जीबाई
श्री श्री ज्ञा.
528
1537 | सुतठ, वाल्हीठ, आसीठ
श्री श्री ज्ञा.
तपा. श्री विजयरत्नसूरि भ. श्री पार्श्वनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 135 वृद्धतपा. विजयरत्नसूरि | भ. श्रीशांतिनाथ जी |जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 135 तपा. धर्मविमलगणि भ. श्री मुनिसुव्रतनाथ | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2
| 135
529
1613 | कमली
प्रा. ज्ञा.
5301505 | चंगाई
ऊकेष ज्ञा.
खरतर श्री जिनभद्रसूरि | भ. श्री चंद्रप्रभस्वामी । जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 135
| 1491 | सपादे, धरमाई
उप. ज्ञा.
532
| 1509 | देगई, वाछुपु, नेताई
ऊकेष
कोरंट श्री सावदेवसूरि तपा. श्री रत्नषेखरसूरि पूर्णिमा.श्री जयप्रभसूरि
भ. श्रीशीतलनाथ जी । जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 136 भ. श्री मुनिसुव्रत जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 136 भ. श्री कुंथुनाथ चतु. | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 136
533
| | 1519 | सापू, अरघू
श्री श्री ज्ञा.
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