Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 460
________________ 438 सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ 1161 1552 मांजू, सोनाई श्री श्री वंश | आगम सोमरत्नसूरि | भ. श्री सुमतिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 162 1162 1548 पिप्पल पद्माणंदसूरि भ. श्री मुनिसुव्रत जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 162 मांजू, माकूसु, सौभागिणि 1163 1576 नाई, मटकी, इंद्राणी श्री श्री वंश | सर्वसूरि भ. श्री अरनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 162 1164 | 1556 राणी, धनाई | श्री श्री ज्ञा तपा इंद्रनंदिसूरि | भ. श्री कुंथुनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 162 1165 1528 चांपलदे, देवलदे | श्री. श्री. ज्ञा. श्री बुद्धिसागरसूरि भ. श्री विमलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 163 1166 1523 | अरघो, नामलदे | श्री. श्री. ज्ञा. | श्री वीर सूरि भ. श्री श्रेयांसनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 1167 1568 | रही, रूषादे | तपा. श्री हेमविमलसूरि | भ. श्री शांतिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 163 1168 1573 | मटकी, इंद्राणी । | श्री श्री वंश सुविहितसूरि भ. श्री आदिनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 163 1169 1548 ओसवंश हीरादे, कत्थाई, रूपाई भवसूरि जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 भ. श्री अभिनंदन नाथ जी 164 1170 1528 | मणकी, डाही उकेश वंश खरतर श्री जिनचंद्रसूरि भ. श्री संभवनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 | 164 1171 1553 | कर्माई, मिरगाई ओसवंश अंचल सिद्धांतसागरसूरि | भ. श्री सुविधिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 1172 1508 | अमकू प्रा. ज्ञा. आगम सिंहदत्तसूरि | भ. श्री शांतिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 1173 1525 | फली, रत्नादे प्रा. ज्ञा. तपा श्री लक्ष्मीसागरसूरि भ. श्री अनंतनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 166 1174 1525 अमरादे, रामति | चिचटगोत्र । श्री कक्कसूरि भ. श्री सुमतिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 166 1175 1536 | नाई. राणी श्री श्री ज्ञा श्री वीरसूरि भ. श्री सुमतिनाथ जी जै.धा.प्र.ले.स.भा.2 | 167 1176 1528 | माणिकदे श्री श्री ज्ञा श्री वीरसूरि भ. श्री कुंथुनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.स.भा.2 168 1177 1513 | सिरि, पूरी प्रा. ज्ञा. तपा. श्रीरत्नशेखरसूरि भ. श्री धर्मनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.स.भा.2 | 168 1178 1568 मटकू, वल्हादे प्रा. ज्ञा. श्रीहेमविमलसूरि भ. श्री आदिनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.स.भा.2 168 1179 ___1525 | पोमी जीविणि श्री. श्री. ज्ञा. आगम. देवरत्नसूरि भ. श्री सुविधिनाथ | जै.धा.प्र.ले.सभा.2 168 जी 1180 1528 | रत्नाई, राजगेई प्रा. वंश खरतर. जिनचंद्रसूरि | भ. श्री श्रेयांसनाथ जै.धा.प्र.ले.स.भा2 168 जी 1181 1530 भ. श्री अभिनंदन जी | जै.धा.प्र.ले.स.भा.2 | मूजी, सोनलदे, कुंअरि उपकेश. श्री देव | गुप्तिसूरि 169 | उप. ज्ञा. गोवर्द्धनगोत्र 1182 1584 षीमाई, वीराई उकेश भ. श्री विमलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 खरतर. श्रीजिनमाणिकयसूरि 169 कांकरियागोत्र 1183 1536 | वीजलदे, माणिकि | श्री. श्री. ज्ञा. | भट्टा श्री बुद्धिसागरसूरि | भ. श्री विमलनाथ जी | जै.धा.प्र.ले.स.भा.2 | 170 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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