Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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454
सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ
| क्र.
संवत् । श्राविका नाम ।
वंश/गोत्र
।
पृ.
प्रेरक/प्रतिष्ठापक | प्रतिमा निर्माण संदर्भ ग्रंथ गच्छ/आचार्य
आदि तपा. श्री जिनरत्नसूरि भ. श्री संभवनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स.
1486
1541
मानू
234
जी
14871 533 | महताब कुंवर
दूगड़ गोत्र
सर्वसूरि
भ. श्री अभिनंदन | पा.जै.धा.प्र.ले.स.
211
1488
श्री.श्री. ज्ञा.
तपा. श्री हेमविमलसूरि
भ. श्री अनंतनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स.
| 239
1565 कुतिंगदे, बारधाई,
राकू, बीनाई | 1509 | जीजाबाई, बेन
जी
1489
तपा श्री शांतिसागरसूरि | भ. श्री चंद्रप्रभु जी| पा.जै.धा.प्र.ले.स.
212
1490
1587 | वइजलदे, अबवादे
उप. ज्ञा.
श्री मलयहंससूरि
234
भ. श्री शीतलनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स. जी भ. श्री सुमतिनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स.
उकेष ज्ञा.
श्रीसूरि
215
1491 1512 | भरमादे, नायकदे,
सोनाई 14921504 | लखाई, बेणी
जी
महतीया वंष
215
भ. श्री शांतिनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स. जी भ. श्री महावीर जी पा.जै.धा.प्र.ले.स.
1493
1504
.............
जाटड़ गोत्र
खरतर, जिनसागरसूरि
219
1494
1504 | लाड़ो
महतीयाण वंष
। | 219
1495
1553 | रामति, माणिकदे
हुंबड़ ज्ञा.
। खरतर, भाभु शीलगणि भ. श्री पार्श्वनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स.
जी बृहतपा श्री
भ. श्री मुनिसुव्रत | पा.जै.धा.प्र.ले.स. उदयसागरसूरि तपा. श्रीलक्ष्मीसागरसूरि | भ. श्रीसुमतिनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स.
| 266
1496
1523
| मानूं, जासी, धादि, प्रा. ज्ञा. लाली
| 176
जी
1497
1503
लाखणदे
प्रा. ज्ञा.
तपा. श्रीजिनरत्नसूरि
भ. श्री मुनिसुव्रत | पा.जै.धा.प्र.ले.स.
| 177
1498 | 1512 | पचू, चमकू, वाल्ही
| प्रा. ज्ञा.
तपा. श्रीरत्नशेखरसूरि
177
भ. श्रीसुमतिनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स. जी भ. श्री कुंथुनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स.
1499
1517 | चाई
उकेष, लुंकड गोत्र | खरतर. श्रीविवेकरत्नसूरि
177
जी
1500
1518 | वारू, गोमति, धर्मिणी प्रा. ज्ञा.
तपा. श्रीलक्ष्मीसागरसूरि
भ. श्रीसुमतिनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स.
177
1501
1519
वाल्ही
श्री. श्री. ज्ञा.
पूर्णिमा राजतिलकसूरि
भ. श्री अजितनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स.
177
1502
1521
सखी, कमकू
श्री. श्री. ज्ञा.
पूर्णिमा. श्रीगुणतिलकसूरि भ. श्रीसुमतिनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स.
178
जी
1503
|1531 | राजवदे, राजाई
श्री. श्री. ज्ञा.
आगम. श्रीदेवरत्नसूरि
भ. श्री सुविधिनाथ| पा.जै.धा.प्र.ले.स.
178
जी
1504
1548 | देल्हणदे, धनी
श्री. श्री. ज्ञा.
पूर्णिमा. सौभाग्यरत्नसूरि | भ. श्री कुंथुनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स.
178
जी
1505
1552 | अमकू, हांसी
प्रा. ज्ञा.
तपा. श्रीउदयसागरसूरि | भ. श्री संभवनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स.
178
जी
बृहत्तपा संवेगसुंदरसूरि
जिनप्रतिमा
पा.जै.धा.प्र.ले.स.
180
1506 1529 | बाई, मनाई, सलबाई, | उस. ज्ञा.
मृगाई, बाई 15071517 | कमुई
181
आगम श्री आनंदप्रभसुरि | भ. श्री कुंथुनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स.
जी
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