Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 572
________________ सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ 550 क्र० संवत् | श्राविका नाम वंश/गोत्र प्रेरक/प्रतिष्ठापक गच्छ/आचार्य आदि 3632 1551 | नागू, सपुरी प्रा.ज्ञा. तपा. हेमविमलसूरि भ. श्री आदिनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स. 137 3633 1551 | मेधू प्रा.ज्ञा. श्रीसूरि 137 3634 1552 | उमादे, करमि प्रा.ज्ञा. तपा.हेमविमलसूरि भ. श्री अजितनाथ पा.ज.धा.प्र.ले.स. जी भ. श्री अजितनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स. | जी भ. श्री नमिनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स. 137 3635 | 1552 मचकू, नाई प्रा.ज्ञा. तपा. हेमविमलसूरि 137 3636 1552 काउ मोढ़ ज्ञा. वृद्ध तपा. उदयसागरसूरि | भ. श्री सुविधिनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स. 137 जी 3637 | 1552 | काऊ, डाही मोढ़ ज्ञा. वृद्ध तपा. उदयसागरसूरि | भ. श्री चंद्रप्रभ जी पा.जै.धा.प्र.ले.स. 137 वृद्ध तपा. उदयसागरसूरि | भ. श्री सुविधिनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स. 138 3638 | 1552 | कर्मी लखी, सुतलाई | प्रा.ज्ञा. जीवाई 3639 | 1552 नागलदे, बिजली प्रा.ज्ञा. जी वृद्धतपा. जिनसुंदरसूरि 138 3640 | 1552 | षीमां, बउलदे रत्नादे | प्रा.ज्ञा. आगमगोत्र | खरतर. जिनसमुद्रसूरि | भ. श्री सुमतिनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स. जी भ. श्री | पा.जै.धा.प्र.ले.स. वैरोट्यप्रतिमा जी | भ. श्री धर्मनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स. 138 3641 | 1552 | जसमादे, पोमी, लक्ष्मी | वायड. ज्ञा आगम. श्रीसोमरत्नसूरि 138 जी 3642 | 1552 | धर्मिणि, रही, मंदुअरि | प्रा.शा. तपा. श्री हेमविमलसूरि | भ. श्री शीतलनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स. 138 3643 | 1553 | अमकू, लखमाई श्रीमाल. ज्ञा. पूर्णिमा. उदयचंद्रसूरि | भ. श्री शांतिनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स. 138 जी 3644 | 1553 | अमकू, चंगी, मनकू | श्रीमाल. ज्ञा. 139 3645 1553 प्रा.ज्ञा. पूर्णिमा. उदयचंद्रसूरि | भ. श्री वासुपूज्य | पा.जै.धा.प्र.ले.स. चतुर्विशति जी तपा. श्री हेमविमलसूरि भ. श्री शांतिनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स. जी पूर्णिमा. श्रीगुणतिलकसूरि भ. श्री वासुपूज्य सपज्य | पा.जै.धा.प्र.ले.स. रतन, चंद्राउली. टांकी सामली, गांगी 139 3646 | | 1553 उसवाल ज्ञा. 139 3647 | 1553 आगम. मुनिरत्नसूरि 139 बजू, खेतलदे, धनी |श्रीमाल ज्ञा. जइतलदे नामलदे, सापू श्रीवंश | भ. श्री संभवनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स. जी भ. श्री शीतलनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स. 3648 1553 पिप्पल.पद्मानंदसूरि जी 3649 | 1553 | देमति श्री श्रीमाल ज्ञा. सर्वसूरि 139 भ. श्री | पा.जै.धा.प्र.ले.स. पद्मप्रभस्वामी जी भ. श्री संभवनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स. 3650 | 1553 | हर्पू, हीराइ प्रा.ज्ञा. पूर्णिमा.श्री चारित्रचंद्रसूरि 139 प्रा.ज्ञा. तपा. श्री हेमविमलसूरि 140 3651 | 1553 | राणी, संपीई, | सोभागिणि 3652 | 1553 | मांजू कुइरि भ. श्री आदिनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स. जी | भ. श्री पा.जै.धा.प्र.ले.स. कुंथुनाथपंचतीर्थी श्री माल ज्ञा. | पूर्णिमा. मुनिचंद्रसूरि 140 जी 3653 | 1554 रमकू लाड़िकि प्रा.ज्ञा. तपा, श्रीहेमविमलसूरि भ. श्री नमिनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.स. 140 3654 | 1554 | कपूरी, रमाई प्रा.ज्ञा. बृहत्तपा. उदयसागरसूरि भ. श्री सुविधिनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स. 140 जी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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