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आठवीं से पंद्रहवीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ
। सन्
श्राविका नाम |
वंश/गोत्र
अवदान
संदर्भ ग्रंथ
प
प्रेरक/प्रतिष्ठापक आचार्य/गच्छ महेंद्रसूरि
सं १२६३
जयाटा
जिनप्रतिमा
जै.शि.सं.भा. ३
सं १२६५
सलखणदेवी
माणिक्यचंद्रसूरि
माणिक्यचंद्रसूरि
श्रीशांतिनाथ
जै.शि.सं.भा. ३
| सं १२६८
जसवइ
नरचंद्रसूरि
नरचंद्रसूरि
जिन प्रतिमा
जै.शि.सं.भा. ३
।
१७
श्री कक्कसूरि
श्री कक्कसूरि
श्री आदिनाथ
जे. जै. ले. सं. भा.२
७
सं १३०० मोषलदे १६४ | सं १३०० | कमूदेवी लक्ष्मी ।
श्री यशोभद्रसूरि
श्री यशोभद्रसूरि
श्री मल्लिनाथ
वही.
|
ललियादेवी | सेनरस की प्रपितामही | वीरनंदि सिद्धांत चक्रवर्ती | उसने एक जिनमंदिर का निर्माण| जै. शि. सं. भा.५ | ७६ थी।
कराया था, मूर्तिकार जिन्नोज द्वारा मूर्ति बनवाकर भट्टारक लक्ष्मीसेन द्वारा स्थापित की गई थी।
| १६६ / १३४६ | नाल्लात्ताल
जै. इ. इ. त. |
२|
| पोन्नुर निवासी मन्नइ पोन्नानदइ की पुत्री थी।
तिरूमलै में विहार नायनार | पोनेइलनाथर नामक अर्हत प्रतिमा
की स्थापना की थी।
१६७१४ वीं शती
मारूदेवी
माणिक नागय्या की
मारूदेवी कला में निपुण थी।
जै. इ. आंध्र.
३०
पुत्री थी।
र
१३८४
मारदेवी
मारदेवी की मत्यु
केशवदेवी की बड़ी
बहन
जै. सि. भा. जै.शि.संभा.४
७
| १६६
१३०१
।
लक्ष्मीदेवी
लक्ष्मीदेवी श्रीबाथा की पलि थी।
लाखाक में उसने आदिनाथ | जै. शि. सं. भा. ५ | ७४ भगवान की मूर्ति स्थापित की थी
१०
१३७२
लक्ष्मी बोम्मक्क | सोहरबवीरगोड़ की पुत्री. सोहरब वंश | तवनिधि ब्रह्म गौण की
पत्नि थी।
उदारदानादि कार्य किया, अंतिम | दा. भा. में. जै. ध. | १५३ समय में समाधि पूर्वक मत्यु का
वरण किया ।
रामक्क
| ११४ वी शती का
यसन्५३६
गेरूसोप्पे के सेठ | योजनसेट्टी की पत्नि थी।
अनंततीर्थ चैत्यालय का निर्माण | कराया था। चतुर्विध दान में |
अग्रणी थी।
द. भा. जै. ध. जै. सि. भा.
१५६ ११
| १७२ | 8 वी शती | शांतलदेवी | बोमण्णसेट्टी की पुत्री, का मध्य
राजा हरिण्णरस की रानी थी।
द. भा. जै. ध. | १५६
समाधिपूर्वक मत्यु | का वरण किया था ।
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