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आठवीं से पंद्रहवीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ
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५.६५ जक्किसुंदरी : १० वीं शती.
कष्णराज ततीय की मत्यु के पश्चात् उनका लघुभ्राता (खोटिग नित्यवर्ष ई. सन् ६६७-६७२) राष्ट्रकूट सिंहासन पर बैठा। इस नरेश के सामन्त पड्डिग ने अपनी धार्मिक भार्या जक्किसुन्दरी द्वारा काकम्बल में निर्मित भव्य जिनालय के लिए दो ग्राम प्रदान किए थे (ई. सन् ६६८)। इनके गुरू कवलिगुणाचार्य को प्रेरणा से साधु-साध्वियों के ठहरने के लिए एक वसति बनवाई गई थी। यह महिला राजवैभव तथा विलासिता से दूर रहकर धर्म ध्यान पर श्रद्धा रखती थी।५४ ५.६६ चामेकाम्बा :
कर्नाटक के कल चुम्बरू (जिला अत्तोली) से प्राप्त एक शिलालेख में वर्णन आता है कि पट्टवर्द्धिक कुल की तिलकभूता, गणिका जन में प्रसिद्ध चामेकाम्बा नाम की श्राविका की प्रेरणा से चालुक्य वंश के (२३) तेइसवें राजा अम्मराज द्वितीय (विजयादित्य षष्ठ) ने सर्वलोकाश्रय जिनभवन (जिनमंदिर) की मरम्मत के लिए बलहारिगण, अड्डुकलिगच्छ के अर्हनंदि मुनि को कलचुम्बरू नामक ग्राम दान में दिया था। इस वंश के राजाओं ने जैनधर्म के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया था ५ ५.६७ चन्द्रायव्वे : ई. सन् की १० वीं शती.
अडोनी तालुका के हालहरवि नामक ग्राम की एक पहाड़ी पर प्राप्त राष्ट्रकूट काल का यह शिलालेख है। उसमें उल्लेख है कि कन्नर की रानी चन्द्रायब्वे सिंदवाड़ी १००० पर शासन करती थी, उसने नन्दवर पर एक जैन मन्दिर का निर्माण कराया था तथा मन्दिर की व्यवस्थाओं के लिए दान भी दिया था।५६ ५.६८ चागलदेवी : ई. सन् की ११ वीं शती.
कन्नड़ भाषा का यह लेख पार्श्वनाथ बस्ति में मुख मंडप के दक्षिण स्तंभ पर अंकित है । वीर शांतर की पत्नि चागल देवी थी । प्रसिद्ध अरसीकब्बे की यह पुत्री थी । वह बड़ी दानवीर और धर्मपरायणा सन्नारी थी । शिलालेख में उसकी प्रंशसा में बहुत से श्लोक दिये गये हैं । अपने पति वीर शांतर के कुलदेवतारूप नोकियब्बे की बसदि के सामने उसने "मकर-तोरण" बनवाया था। बल्लिगांव में चागेश्वर नाम का मन्दिर बनवाया था, बहुत से ब्राह्मणों को कन्यादान करके "महादान" पूर्ण किया था। अपने आश्रय में आये हुए आश्रितों को और प्रशंसकों को यथेष्ट दान देकर संतुष्ट किया था, अतः दानी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की थी।५० ५.६६ सावियब्बे :
वीरांगना सावियब्बे श्रावक शिरोमणि वीर मार्तण्ड महासेनापति चामुण्डराय जो सिद्धांत चक्रवर्ती नेमिचंद्राचार्य के शिष्य थे, उनके समकालीन थी । यह वीर महिला-रत्न पराक्रमी वीर बायिक तथा उसकी धर्मपत्नि जाबय्ये की पुत्री थी और लोक विद्याधर की भार्या थी । एक ओर तो वह अपने पति के साथ युद्ध क्षेत्र में जाकर वीरतापूर्वक रण-जौहर दिखलाती थीं और दूसरी ओर अतिरिक्त समयों में वह नैष्ठिक श्राविका-व्रताचार का पालन करती थी।
श्रवणबेलगोल की बाहुबली बसति में पूर्व दिशा की ओर एक पाषाण पर इस युद्धप्रिय महिला की वीरगति लेखांकित है। लेख के ऊपर एक दश्य हैं, जिसमें यह वीर नारी घोड़े पर सवार है और हाथ में तलवार उठाये हुए अपने सम्मुख एक गजारूढ़ योद्धा पर प्रहार कर रही है । लेख में इस महिला-रत्न को रेवती रानी जैसी पक्की श्राविका, सीता जैसी पतिव्रता, देवकी जैसी रूपवती, अरुन्धती जैसी धर्मप्रिया और शासन देवी जैसी जिनेन्द्र भक्त बताया है। ५.७० सोवल देवी : ई. सन् की १३ वीं शती.
सोवल देवी महामण्डलेश्वर मल्लिदेवरस संधिविग्रही मंत्री एच की पत्नी थी। उसने अपने छोटे भाई ईच के स्मरणार्थ एक मन्दिर का निर्माण किया था। भगवान् शांतिनाथ के अष्टविध पूजन के लिए तथा मन्दिर की मरम्मत के लिए ईस्वी सन् १२०८ में भूमि का दान दिया था। डॉ. ज्योतिप्रसादजी की पुस्तक के अनुसार सोवलदेवी वीर बल्लाल के मंत्री ईचण की पत्नी थी । इस जिनभक्त दंपत्ति ने गोग्ग नामक स्थान में वीरभद्र नामक सुन्दर जिनालय का निर्माण कराया था, तथा एक और वसति का निर्माण करवाकर उसके लिए दानादि दिया था। इस धर्मात्मा पति परायणा महिला की उपमा सीता और पार्वती से दी गई है ।
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