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आठवीं से पंद्रहवीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ
क्र. | संन्
श्राविका नाम | वंश/गोत्र
अवदान
संदर्भ ग्रंथ
प्रेरक/प्रतिष्ठापक
आचार्य/गच्छ
१०२४
सिन्नवइ
पल्लव राजा की रानी थी।...........
१६४
तिरूमले के देव मंदिर के लिए | १.जैन. लिट्. इन. त.
आरंभनंदिन् नामक दीपक भेंट नाडु किया तथा अन्य दीपक की | २. द. भा. में. जै. ध व्यवस्था हेतु पैसे दिये थे।
४१ |
३०६
दी | नालिकब्बे । त्रिभुवनमल्लदेव के राज्य के
समय का है।
अपने पति की स्मति में छत्त जिनालय का निर्माण कराया था।| जैनि. इन. आंध.
१०२५
चामुण्डाबाई | वाणिक नण्णप्पयन की
पत्नी थी पेरूम्बणप्पडी
की निवासी थी
जैन कुंदवइ जिनालय के लिए | जैना लिट्. इन. तमिल. | १६५ |
एक दीपक समर्पित किया उसके लिए पैसे भेंट में दिये थे।
नाडु
४३ / १६ी |
भोगव्वे,
| तिप्पिसेट्टी सातय्या | पुस्तक संकलचंद्र |
की पत्नी
मत्यु का उल्लेख है।
|
जै. सि. भा.
६३
४४ | १०७७ |
माललदेवी
पद्मनंदी सिद्धांतदेव
कुप्पटूर में विक्रमादित्य ब्रह्म | जैन. बिब्लि. ग्राफी. | २०२ |जिनालय का निर्माण किया था। इन. टु. वोल्यू
४५ | १७ | पद्मावतीयक्क
अभयचंद्र
जै. शि. भा.
| ६३ |
अभयचंद्र द्वारा प्रांरभ की गई| बसदि दिवमंदिर) को पूर्ण किया तथा देवमंदिर के चारों ओर एक
घेरा भी बनवा दिया।
१०७७ | रानी चट्टलदेवी
| पाँच मंदिरों का निर्माण किया था।
जै. बि. पा.
७६२
MTR
महादेवी
जैनम की बेजोड़ संरक्षिका | आ. इंदुमती. अ. ग्रं. | ५
गंगवाड़ी के राजा भुजबलगंग की पत्नी
वाचलदेवी
जिन भवनों का निर्माण करवाकर धर्मप्रभावना की थी।
४६ | १२ वी शती |
चन्दब्बे
राजा महासेठी के पत्नी थी।
४६
वर्द्धमान स्वामी की मूर्ति की | प्रा. जै. स्मारक. पुनः प्रतिष्ठा कराई थी।
५० | १० |
आस्त
। महिपालदेव की माता | मूलसंघ की शिष्या | भ. पार्श्वनाथ की प्रतिमा की | जै. शि. सं. भा. ३
थी। प्रतिष्ठा करवाई थी।
| २२५
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