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________________ 262 आठवीं से पंद्रहवीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ क्र. | संन् श्राविका नाम | वंश/गोत्र अवदान संदर्भ ग्रंथ प्रेरक/प्रतिष्ठापक आचार्य/गच्छ १०२४ सिन्नवइ पल्लव राजा की रानी थी।........... १६४ तिरूमले के देव मंदिर के लिए | १.जैन. लिट्. इन. त. आरंभनंदिन् नामक दीपक भेंट नाडु किया तथा अन्य दीपक की | २. द. भा. में. जै. ध व्यवस्था हेतु पैसे दिये थे। ४१ | ३०६ दी | नालिकब्बे । त्रिभुवनमल्लदेव के राज्य के समय का है। अपने पति की स्मति में छत्त जिनालय का निर्माण कराया था।| जैनि. इन. आंध. १०२५ चामुण्डाबाई | वाणिक नण्णप्पयन की पत्नी थी पेरूम्बणप्पडी की निवासी थी जैन कुंदवइ जिनालय के लिए | जैना लिट्. इन. तमिल. | १६५ | एक दीपक समर्पित किया उसके लिए पैसे भेंट में दिये थे। नाडु ४३ / १६ी | भोगव्वे, | तिप्पिसेट्टी सातय्या | पुस्तक संकलचंद्र | की पत्नी मत्यु का उल्लेख है। | जै. सि. भा. ६३ ४४ | १०७७ | माललदेवी पद्मनंदी सिद्धांतदेव कुप्पटूर में विक्रमादित्य ब्रह्म | जैन. बिब्लि. ग्राफी. | २०२ |जिनालय का निर्माण किया था। इन. टु. वोल्यू ४५ | १७ | पद्मावतीयक्क अभयचंद्र जै. शि. भा. | ६३ | अभयचंद्र द्वारा प्रांरभ की गई| बसदि दिवमंदिर) को पूर्ण किया तथा देवमंदिर के चारों ओर एक घेरा भी बनवा दिया। १०७७ | रानी चट्टलदेवी | पाँच मंदिरों का निर्माण किया था। जै. बि. पा. ७६२ MTR महादेवी जैनम की बेजोड़ संरक्षिका | आ. इंदुमती. अ. ग्रं. | ५ गंगवाड़ी के राजा भुजबलगंग की पत्नी वाचलदेवी जिन भवनों का निर्माण करवाकर धर्मप्रभावना की थी। ४६ | १२ वी शती | चन्दब्बे राजा महासेठी के पत्नी थी। ४६ वर्द्धमान स्वामी की मूर्ति की | प्रा. जै. स्मारक. पुनः प्रतिष्ठा कराई थी। ५० | १० | आस्त । महिपालदेव की माता | मूलसंघ की शिष्या | भ. पार्श्वनाथ की प्रतिमा की | जै. शि. सं. भा. ३ थी। प्रतिष्ठा करवाई थी। | २२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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