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३.६.१३ कालश्री : भगवान् पार्श्वनाथ के समय की घटना है। आम्रकल्पा नगरी में काल नामक गाथापति रहता था, वह धनाढ्य था, उसकी मनोहर रूपवाली कालश्री नाम की पत्नी थी । २६
ऐतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ
३.६.१४ काली : काली आम्रकल्पा नगरी के काल एवं कालश्री की पुत्री थी तथा अविवाहित थी । वह कुमारी होते हुए भी जीर्ण शरीरवाली थी । उसका शरीर वद्धा स्त्रियों जैसा कांतिहीन था। पति बनने वाले पुरुष उससे विरक्त हो गए थे, कोई उसे चाहता नहीं था, अतएव वह अविवाहित ही थी। एक बार पार्श्वनाथ भगवान् संघ सहित नगरी में पधारे। माता-पिता से अनुमति लेकर उसने भगवान् के दर्शन किए तथा उपदेश श्रवण किया । वैराग्य हुआ और माता-पिता की आज्ञा लेकर दीक्षित हो गई। पुष्पचूला आर्या के समीप रहते हुए वह शरीरासक्त हुई, तथा गुरुणी से अनुशासनहीन होकर अलग उपाश्रय में स्वच्छंद रहने लगी। शरीर बकुशता जन्य दोषों की आलोचना किये बिना ही स्वर्गवासी हुई।
इसी प्रकार राजी", रजनी, विद्युत और मेघा कुमारिकाओं ने जो क्रमशः राजश्री, रजनीश्री, विद्युतश्री और मेघश्री की सुपुत्रियां थी, सभी आमलकप्पा नगरी की निवासिनी थी तथा भगवान् पार्श्वनाथ की श्राविकाएं थी जो कालांतर में दीक्षित हुई। इसी प्रकार द्वितीय वर्ग के पांच अध्ययनों में श्रावस्ती में भगवान् पार्श्वनाथ के पदार्पण पर श्राविका सुंभा, निसुंभा, रंभा, निरंभा, मदना* इन सबने दीक्षा ली।
३.६.१५ सोमा जी जयन्ति जी : अस्थिक ग्राम में भ० पार्श्वनाथ जी की परंपरा के उत्पल नामक निमित्तवेत्ता विद्वान् रहते थे । उत्पल की दो बहनें थी सोमा और जयन्ति । वे दोनों दीक्षित होने में असमर्थ थी, अतः पार्श्व परंपरा की परिव्राजिकाओं के रूप में रहती थी। जब वे चोराग सन्निवेष में थी तब भगवान् महावीर स्वामी को वहाँ के अधिकारियों ने गुप्तचर समझकर पकड़ लिया, और अनेक यातनाएं दी। तब इन्हीं उत्पल की दोनों बहनों ने अधिकारियों को भ० महावीर के संबंध में यथार्थ जानकारी दी। अधिकारियों ने प्रभु महावीर तथा उनके साथ रह रहे शिष्य गोशालक को बंधनमुक्त कर दिया ।
३.६.१६ विजया जी प्रगल्भा जी : ये दोनों भगवान् पार्श्वनाथ की परंपरा की परिव्राजिकाएँ थी। एक बार भगवान् महावीर कुवि सन्निवेश पधारे, गोशालक भी उनके साथ ही था । वहाँ के अधिकारियों ने उन्हें गुप्तचर समझकर पकड़ लिया। तब विजया और प्रगल्भा दोनों ने घटना स्थल पर पहुंचकर उन्हें छुड़ाया। वे धर्मश्रद्धालु तथा भक्तिपरायणा थी ।
३.६.१७ श्रीमती सुभद्रा जी : वाराणसी नगरी में भद्र नामक एक अतिसमृद्ध सार्थवाह रहता था। उसकी पत्नी सुभद्रा, सुन्दर और सुशीला थी। अपने पति के साथ अनेक वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी वह वन्ध्या थी । अपने इस दुःख से वह दुःखी रहने लगी। एक दिन भगवान् पार्श्वनाथ की सुव्रता आर्या भिक्षा के लिए घूमते हुए सुभद्रा के घर पहुंची। सुभद्रा ने साध्वियों से संतान उत्पन्न होने का उपाय पूछा। सुभद्रा ने साध्वियों के लिए ये कार्य अकल्पनीय बताये, तथा उसकी इच्छा देखकर वीतराग प्ररूपित धर्म का महत्व समझाया। सुभद्रा ने संतोष एवं प्रसन्नतापूर्वक श्राविका के बारह व्रतों को अंगीकार किया। कालांतर में प्रव्रजित होकर वह बहुपुत्रिका देवी के रूप में उत्पन्न हुई । ४३
३.६.१८ प्रिया जी : राजगृह नगर में सुदर्शन गाथापति की पत्नी थी प्रिया । प्रिया ने एक पुत्री को जन्म दिया जो जीर्ण शरीरवाली थी तथा वरविहीन श्राविका थी, उसने पार्श्वनाथ भगवान् के संघ में दीक्षा धारण की । ४४
भगवान् पार्श्वनाथ परंपरा की श्राविकाएं इलश्री, सेतरा श्री सौदामिनी श्री, इन्द्राश्री, घनाश्री, विद्युताश्री, वाराणसी के गाथापतियों की इन पत्नियों के नाम इनकी पुत्रियाँ जो श्राविकाएँ थीं, उन्होंने भगवान् पार्श्वनाथ के संघ में दीक्षा धारण की थी । ४५ भगवान् पार्श्वनाथ चम्पानगरी में पधारे। श्राविका रूपक श्री, सुरुपा श्री, रुपांशा श्री, रुपवती श्री रूपकान्ता श्री, रत्नप्रभा श्री, इनकी सुपुत्रियाँ जो रूपा, सुरूपा, रुपांशा, रुपवती, रुपकांता, रत्नप्रभा के नाम से प्रसिद्ध हुई, भगवान् पार्श्व के संघ में दीक्षित हुई । ४६
भगवान् पार्श्वनाथ एक बार नागपुर पधारे सहस्राम्रवन में विराजमान हुए तब श्राविकाएं. १ कमल श्री, २ कमलप्रभा श्री, ३ उत्पला श्री, ४ सुदर्शना श्री, ५ रूपवती श्री, ६ बहुरूपा श्री, ७ सुरूपा श्री, ८ सुभगा श्री, ६ पूर्णा श्री, १० बहुपुत्रिका श्री, ११ उत्तमा श्री, १२ भारिका श्री,१३ पद्मा श्री, १४ वसुमती श्री, १५ कनका श्री, १६ कनक प्रभा श्री, १७ अवतंसा श्री, १८ केतुमती श्री, १६ वज्रसेना श्री, २० रतिप्रिया श्री, २१ रोहिणी श्री, २२ नवमिका श्री, २३ ह्रीं श्री, २४ पुष्पवती श्री, २५ भुजंगा श्री, २६ भुजंगवती श्री, २७ महाकच्छा
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