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जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
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बुलाकर उसमें श्वेतांबर परंपरा में प्रचलित आगम सूत्रों का वांचन और संकलन किया तथा प्रथम बार उन्हें लिपिबद्ध किया था।
जैन श्वेतांबर साहित्य के इतिहास में यह घटना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इस प्रकार वलभी उसके एक दो शताब्दी पहले से ही जैनों का एक गढ़ रहता आया था। चतुर्थ शती के प्रारंभ में भी नागार्जुन सूरि ने वहाँ आगमों की वाचना की थी। सातवीं शताब्दी में उत्तरापथ के एकाधिपति सम्राट हर्षवर्धन के राज्यकाल में बड़ोदा के निकट अकोटा नामक स्थान में खुदाई में जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई। उनमें कुछ मूर्तियों पर अभिलेख भी हैं। जिस पर जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का नाम है तथा एक अन्य अभिलेख में चंद्रकुल की जैन महिला नागेश्वरी देवी का नाम है। जिसने जीवन्त स्वामी की मूर्ति निर्माण करायी थी। हर्षवर्धन के समय में चीनी यात्री ह्यूनसांग भारत आया था, उसने अपनी पुस्तक में लिखा है कि उस समय बहु पत्नीत्व का बहुत प्रचार था, विधवा विवाह निषिद्ध था, बाल विवाह प्रारंभ हो गया था, सती प्रथा प्रचलित थी। हर्ष की माता यशोमति पति की मत्यु पर उसके साथ सती हो गई थी, धार्मिक वातावरण सम्यक् था। लोग उच्च नैतिक जीवन जीते थे।२० ई. पू. की तीसरी चौथी शताब्दी से लेकर ई. सन् की छठी शती के इतिहास में गंगवंश की महिलाओं की उल्लेखनीय सेवा का निर्देश प्राप्त होता हैं। राजाओं के साथ गंगवंश की रानियों ने भी जैन धर्म की उन्नति के लिए अनेक उपाय किये थे। ये रानियाँ मंदिरों की व्यवस्था करती, नये मंदिर और तालाब बनवाती एवं धर्म कार्यों के लिए दान की व्यवस्था करती थी। उस राज्य के मूल संस्थापक दडिग और उनकी भार्या कंपिला के धार्मिक कार्यों के संबंध में कहा गया है कि इस दम्पत्ति ने अनेक जैन मंदिर बनवाए थे तथा मंदिरों की पूर्ण व्यवस्था की थी। श्रवणबेलगोला के शक सं. ६२२ के अभिलेखों में ओदेयरेनाड़ में चित्तूर के मौनी गुरू की शिष्या नागमती, पेरूमालु गुरू की शिष्या धण्णकुत्तारे, बिगुरवि नमिलूर संघ की प्रभावती, मयूरसंघ की अध्यापिका दनितावती आदि का उल्लेख आता है। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की राज्यसभा में (३८०. ४१४) जैन आचार्य सिद्धसेन का बड़ा प्रभाव था। ४.२ आंध्र देश अथवा कलिंग देश में जैनधर्म
"कलिंग देश में जैनधर्म" से यहाँ प्रमुख रूप से खारवेल के राज्यकाल में जैन धर्म का इतिहास ही अभिप्रेत है। परन्तु इसका यह अभिप्राय नहीं हैं कि खारवेल से पूर्व कलिंग-देश में जैनधर्म के कोई चिन्ह ही नहीं थे। ऐसा करने से तो हाथीगुफा के शिलालेख, ई. पू. पांचवी और चौथी शती के स्मारकों से वहाँ के स्थापत्य और शिल्प की सभ्यता एवं जैनागमों में अत्यंत पूज्य ग्रंथ में से निकलनेवाले निष्कर्षों से ही इन्कार करना हो जाएगा। फिर भी यह तो स्वीकार करना ही चाहिए कि खारवेल के हाथीगुंफा के और उसी की रानी के स्वर्गपुरी के शिलालेख के अतिरिक्त कोई भी अन्य साधन हमें उपलब्ध नहीं हैं कि जिसके निश्चित आधार पर हम इस देश के जैन इतिहास के अपने अनुमान खड़े कर सकते हैं। यह सम्राट् खारवेल कब, कहाँ और कितने समय तक राज करता रहा था, वह जैन था या नहीं, इसका प्रमुख ऐतिहासिक प्रमाण तत्कालीन हाथीगुंफा का वह शिलालेख ही है। सम्राट् खारवेल कलिंग का महान् सम्राट् था। उस कलिंग देश की सीमाएँ क्या थीं, यह ठीक-ठीक नहीं बताया जा सकता है
खारवेल का यह शिलालेख "भारत के प्राचीन स्मारकों में से एक महान् विशिष्ट स्मारक होते हुए भी अत्यंत जटिल हैं। भ. महावीर के अनुयायी प्राचीनतम राजाओं में से किसी भी राजा का शिलालेख में मिलनेवाला नाम एक सम्राट् खारवेल का ही हैं। मौर्य समय के बाद के राजाओं और उस समय के जैनधर्म के प्रताप की दष्टि से खारवेल का यह शिलालेख देश में उपलब्ध एक महत्व का ही नहीं अपितु एक मात्र लेख हैं। जैन इतिहास की दष्टि से भी इसकी महत्ता अपूर्व है। उड़ीसा के सम्राट् खारवेल उसकी साम्राज्ञी के खण्डगिरि पर के दो शिलालेख जैनों की इस प्रगति को प्रमाणित करते हैं और इस ऐतिहासिक सत्य को हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं । यह सम्राट्, ई. पू. दूसरी शती के मध्य में याने ई. पू. १८३ से १५२ में भारतवर्ष के पूर्वी तट पर राज्य करता था। उदयगिरि और खण्डगिरि पर की अन्य गुफाएँ एवं मंदिरों के ध्वंसावशेषों से भी इसका समर्थन होता है।
__ स्वर्गपुरी गुफा में तीन शिलालेख हैं जिसमें पहले का कलिंग सम्राट् खारवेल की पटरानी का है। वह लालाक की पुत्री थीं। उसके द्वारा निर्मित गुफा और जैन मंदिर का उल्लेख छोटे शिलालेख वाली गुफा के साथ जुड़ी हुई है। डॉ बेनर्जी इसे मंचपुरी गुहा कहते हैं। इसे स्वर्गपुरी, बैकुण्ठ गुफा के नाम से भी जाना जाता रहा है। बेनर्जी के अनुसार-- “वस्तुतः यह गुफा दो मंजिली और पार्श्व पक्षवाली गुफा की ही ऊपरी मंजिल हैं, परन्तु स्थानिक लोग बहुधा भागों को भी पथक् कह देते हैं।" प्रथम लेख सामने के दूसरे और तीसरे द्वार के बीच के आए हुए स्थान पर खुदा हआ और तीन पंक्तियों का हैं, और वह कहता हैं कि "कलिंग के
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