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जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
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wwcododootococcorrecome ततीय अध्याय
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ऐतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ
बाईसवें तीर्थंकर भगवान् श्री अरिष्टनेमि जी के पश्चात् तेइसवें तीर्थंकर भगवान श्री पार्श्वनाथ जी हुए। आपका समय ईसा से पूर्व लगभग आठवीं शताब्दी माना जाता है। आप भगवान् महावीर से दो सौ पच्चास वर्ष पूर्व हुए थे। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आज के इतिहासकार भगवान् पार्श्वनाथ और भगवान् महावीर को ऐतिहासिक पुरुष मानने लगे हैं। ३.१ तीर्थंकर पार्श्वनाथ : एक ऐतिहासिक पुरुष :
भगवान् पार्श्वनाथ और भगवान् महावीर ऐतिहासिक पुरुष हैं। इनके काल की श्राविकाओं की चर्चा के पूर्व यहाँ भगवान पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता पर विचार कर लेना आवश्यक है। भगवान् पार्श्वनाथ जी भगवान् महावीर से ३५० वर्ष पूर्व वाराणसी में जन्में थे। तीस वर्ष तक गृहस्थाश्रम में रहे, फिर संयम लेकर उग्र तपश्चरण कर कर्मों को नष्ट किया, केवल ज्ञान प्राप्त कर भारत के विविध अंचलों में परिभ्रमण कर जन-जन के कल्याण हेतु उपेदश दिया। सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर सम्मेद शिखर पर परिनिर्वाण को प्राप्त हुए।
भगवान् पार्श्वनाथ जी के जीवन प्रसंगों में अनेक चमत्कारिक प्रसंग हैं, जिनको लेकर कुछ लोगों ने उन्हें पौराणिक महापुरुष माना है। किंतु वर्तमान शताब्दी के अनेक इतिहासज्ञों ने उस पर गंभीर अनुशीलन, अनुचिंतन किया और सभी इस निर्णय पर पहुंचे कि भगवान पार्श्वनाथ जी एक ऐतिहासिक महापुरुष हैं। सर्वप्रथम डॉक्टर हर्मन जेकोबी ने जैनागमों के साथ ही बौद्ध पिटकों के प्रमाणों के प्रकाश में भगवान् पार्श्वनाथ जी को एक ऐतिहासिक पुरुष सिद्ध किया है। उसके पश्चात् कोलब्रुक, स्टीवेन्सन, एडवर्ड टॉमस, डॉ० बेलनकर, डॉ० दासगुप्ता, डॉ० राधाकृष्णन, शार्पेन्टीयर, गेरीनोट, मजमुदार, ईलियट और पुसिन प्रभति अनेक पाश्चात्य एवं पौर्वापत्य विद्वानों ने भी यह सिद्ध किया है कि भ० महावीर से पूर्व एक निग्रंथ संप्रदाय था और उस संप्रदाय के प्रधान भगवान् पार्श्वनाथ थे।
___ डॉक्टर वासम के अभिमतानुसार भगवान् महावीर को बौद्ध पिटकों में बुद्ध के प्रतिस्पर्धी के रूप में अंकित किया गया है, अतः उनकी ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। भगवान् पार्श्वनाथ चौबीस तीर्थंकरों में से तेइसवें तीर्थंकर थे। डॉक्टर चार्ल शाटियर ने लिखा है:- हमें इन दो बातों का भी स्मरण रखना चाहिए कि जैन धर्म निश्चितरूपेण महावीर से प्राचीन है। उनके प्रख्यात पूर्वगामी भ० पार्श्वनाथ प्रायः निश्चित रूपेण एक वास्तविक व्यक्ति के रूप में विद्यमान रह चुके हैं। परिणामस्वरूप जैन धर्म के मूल सिद्धांतों की मुख्य बातें भ० महावीर से बहुत पहले अस्तित्व में आ चुकी थी। विज्ञों ने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर निग्रंथ संप्रदाय का अस्तित्व भ० महावीर से पूर्व सिद्ध किया है। यथाः उत्तराध्ययन सुत्र के तेइसवें अध्याय में श्री केशी श्रमण और श्री गौतम स्वामी का संवाद है। वह संवाद भी इस बात पर प्रकाश डालता है कि भ० महावीर से पूर्व निग्रंथ संप्रदाय में चार याम को मानने की परम्परा रही है और उस संप्रदाय के प्रधान नायक भगवान् पार्श्वनाथ थे।
भगवती, सूत्रकृतांग और उत्तराध्ययन आदि आगमों में ऐसे अनेक पार्खापत्य श्रमणों का वर्णन आया है जो भ० पार्श्वनाथ के चातुर्याम धर्म के स्थान पर भ० महावीर स्वामी के पंच महाव्रत रूप धर्म को स्वीकार करते हैं। इससे यह भी सिद्ध होता है कि भ० महावीर स्वामी से पूर्व भी चातुर्याम धर्म को मानने वाला निग्रंथ संप्रदाय था। भगवती (शतक १५) के वर्णन से यह भी ज्ञात होता
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