Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जैन साहित्यका इतिहास
पूर्व-पीठिका १. जैनधर्मके इतिहासकी खोज और उसका परिणाम ___ 'इतिहास' शब्द हमारे लिए नया नहीं है। किन्तु हमारे देशके इतिहास लेखकोंको भी यह मानना पड़ा है कि इतिहासकी जिज्ञासा हमारे देशके जन-साधारणमें और शिक्षित कहलानेवाले वर्गमें भी अत्यन्त मन्द रही है। और आज यदि हमारे इतिहास नेत्र खुले हैं तो पाश्चात्य विद्वानोंके संसर्ग और प्रभावसे।
जब पाश्चात्य विद्वान भारतवर्षके निकट सम्पर्कमें आये तो उनका ध्यान इस देशके इतिहासकी ओर गया। पहले तो यही कहा जाता रहा कि मुसलमानोंके आक्रमणसे पूर्व (ईसाकी ११ वीं शती ) भारतका कोई इतिहास नहीं मिलता। किन्तु १७९३ ई० में सर विलियम जोन्सने भारतपर आक्रमण करनेवाले सिकन्दरका इतिहास लिखनेवालोंके 'सैन्द्रोकोट्टस' को जब संस्कृत साहित्यका चन्द्रगुप्त बतलाया तो भारतीय इतिहासकी पूर्वावधि सिकन्दरके आक्रमणकालसे निर्धारित की गई।
इसी समयके लगभग ग्रीक और रोमके प्राचीन साहित्यके पण्डित पाश्चात्य विद्वानोंने भारतकी प्राचीन भाषाओंका अध्ययन प्रारम्भ किया। वे यह देखकर आश्चर्य चकित हुए कि संस्कृत
१. भा० इ० रू०, जि० १, पृ० ६ । २. कै० हि०, भू०, पृ० १ ।
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