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अच्छा महाराज, आपके सामन्तों में यदि कोई वीरताका घमंड रखता हो, तो इस दंडको उखाड़के मेरे बलकी परीक्षा करे । सुनकर मुंजने अपने सैनिकोंकी ओर देखा 1 इशारा पाते ही सामन्तगण . उसे उखाड़ने का प्रयत करने लगे परन्तु किसीसे भी वह रंचमात्र नहीं हिला । तब राजा सिंहल वीरोंकी लज्जा जाते हुए देखकर स्वयं उठ खड़ा हुआ और एक हाथ से उस लोहदंडको उखाड़कर बोला, अच्छा अब मेरा गाड़ा हुआ कोई उखाड़े । ऐसा कहकर उसने एक हाथसे उस लोहदंडको फिर गाड़ दिया । तब तेली वल लगा लगाकर थक गया परन्तु लोहदंड नहीं उखड़ा । अन्यान्य सामन्त भी अपना अपना बल आजमाके देख चुके, पर सफलमनोरथ कोई नहीं हुए । अन्तमें राजकुमार शुभचन्द्र और भर्तृहरि दोनोंनें मुंजके सम्मुख हाथ जोड़कर कहा, तात, यदि आज्ञा हो, तो हम लोग इस लोहदंडको उखाड़े । इस पर राजाने हँसकर कहा, बेटो, तुम लोगों का यह काम नहीं है। अभी तुम वालक हो, इसलिये अखाड़े में जाकर अपनी जोड़ीके लड़कोंसें कुश्ती खेलो । बालकोंने कहा, महाराज, सिंहनी के बच्चोंको हाथीका "मस्तक विदारण करना कौन सिखलाता है ? हम लोग आपके पुत्र हैं । इस दंडको हाथसे उखाड़ना क्या बड़ी बात है ? आप आज्ञा देवें, तो बिना हाथ लगाये इसको निकालके फेंक सकते हैं । यदि ऐसा न कर सकें, तो आप हमें क्षत्रियपुत्र नहीं कहना । इस प्रार्थनापर भी मुंजने कुछ ध्यान न दिया और उन्हें समझाकर टालना चाहा, परन्तु बालहठ बुरा होता है; अन्तमें आज्ञा देनी ही पड़ी । तव कुमारोंने चोटीके वालोंका फंदा लगाकर देखते देखते एक झटके में लोहदंडको निकालके फेंक दिया । चारों ओरसे धन्य धन्यकी ध्वनि गूंज उठी । तेली निर्मद होकर अपनी राह लग गया ।
राजतृष्णा बहुत बुरी होती है । बड़े बड़े विद्वान् इसके फंदे में पड़कर अनर्थ कर बैठते हैं । उस दिन राजा मुंजको बालकोंका यह कौतुक देखकर विचार हुआ, ओह ! 'इन बालकोंके बलका कुछ ठिकाना है? इनके जीते जी क्या मेरे राज्यसिंहासनकी कुशलता हो सकती है ? अवश्य ही जब ये लोग इच्छा करेंगे, मुझे सिंहासनसे च्युत करनेमें देर न लगावेंगे । यदि इस समय इनका निर्मूलन किया जावेगा, तो राजनीतिकी बड़ी भारी भूल होगी । विषवृक्षके अंकुरको ही नष्टकर डालना बुद्धिमानी है | तत्काल ही मंत्रीको बुलाकर मुंजने अपना विचार प्रगट किया और कहा, श्री ही इनको परलोकका मार्ग दिखानेका प्रयत्न करो । मंत्री सन्न हो गया । छातीपर पत्थर रखकर उसने मुंजको बहुत समझाया यह अनर्थ न कीजिये । राजकुमारोंके द्वारा ऐसी शंका करने के लिये कोई कारण नहीं दीखता । परन्तु मुंजने एक न सुनी। कहा, राजनीतितत्त्वमें अभी तक तुम अपरिपक्व ही हो। इसमें तुम कुछ विचाराविचार मत करो, और हमारी आज्ञाका पालन करो । मंत्री हृदय में दुःखी हो "जो आज्ञा " कहकर चला गया। पश्चात् उसने राजाज्ञाकी पालना करने की बहुत चेष्टा की, परन्तु उसका हृदय तत्पर नहीं हुआ । एकान्तमें राजपुत्रोंको बुलाकर उसने मुंजके भयंकर विचारको प्रगट कर दिया और उज्जयिनी छोड़कर भाग जानेकी सम्मति दी । तब राजकुमारोंने अपने पिता सिंहलके निकट मुंजकी गुप्तमंत्रणा प्रगटकर पूछा, हम लोगों का अब क्या कर्तव्य है, यह आपको स्थिर करना चाहिये । मुंजके पामर विचारको सुनकर सिंहलका क्रोध उबल उठा । उन्होंने अधीर होके कहा, यदि मुंज ऐसा नीच है, तो तुम क्यों चुप बैठे हो ? जाओ और इसके पहले ही कि वह अपने पड्यंत्रको कार्यमें परिणत करे, तुम उसे यमलोकको पहुंचा दो । क्योंकि राजनीतिमें "हनिये ताहि हनै जो आपू" ऐसा कहा है । इसपर तत्त्वविशारद उदार हृदय राज