Book Title: Gyanarnava
Author(s): Pannalal Baklival
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ अन्तमें— श्रीरायचन्द्रजैनशास्त्रमाला के उदारव्यवस्थापकों को हार्दिक धन्यवाद देकर मैं यह लेख समाप्त करता हूं, जिन्होंने जैनसाहित्यके प्रचार करनेके लिये एक ऐसी उदारसंस्था स्थापित की है, जो जैनियोंकी अनन्तउपकारकारिणी और अभूतपूर्व है । श्रीजिनदेवसे प्रार्थना है कि यह संस्था अपने कर्तव्यका पालन द्विगुण चतुर्गुण उत्साहसे करनेमें समर्थ हो । अलमतिपलवितेन । चंदावाड़ी - बम्बई } जिनवाणीका सेवक - नाथूराम प्रेमी । २८-७-०७ श्रीशुभचन्द्राचार्यका जीवनचरित । 1 प्राचीनकालमै मालवदेशकी उज्जयिनी नगरीमें एक सिंह नामका राजा राज्य करता था । वह बड़ी धर्मात्मा था और प्रजाका अपने पुत्रके समान पालन करता था । उसके राज्यमै सब लोग बड़े आनन्दसे निर्भय होकर अपने दिन व्यतीत करते थे । राजाके कोई संतान नहीं थी, इसलिये एक दिन एकान्तमें बैठे हुए उसे इस प्रकारकी चिन्ता हुई, कि - "हाय ! मेरे कोई पुत्र नहीं है ! विना पुत्रके यह सम्पूर्ण वैभव शून्य है । पुत्रके विना मेरे वीरवंशकी अब कैसे रक्षा हो सकेगी सचमुच पुत्रके विना संसार निरानन्दमय है और यह जीवन भी दुःखमय है ।" इस प्रकार के आन्तरिक दुःखमें मग्न होनेसे राजाकी मुखश्री कुछ मलिन देखकर मंत्रीने पूछा कि महाराज ! उदासीताका क्या कारण है? यदि हम लोगों के वशका होगा, तो उसके दूर करनेका प्रयत्न करेंगे ! मंत्री अधिक आग्रहसे इच्छा न रहते भी राजाको अपने हृदयकी व्यथा कहनी पड़ी । वुद्धिमान् मंत्रीने इस दैवाधीन बातको सुनकर निवेदन किया कि महाराज, सम्पूर्ण सांसारिक सुखोंकी प्राप्ति पुण्यके प्रभावसे होती है । विना पुण्यके उदयके कुछ नहीं होता । इस लिये इसके सिवाय अन्य शरण नहीं है । पुण्य कमाइये, आपकी सच इच्छायें पूर्ण होंगीं । मंत्रीके इस प्रकारके सम्बोधनसे राजाको संतोष हुआ, और वह धर्मकृत्यों में विशेष सावधान होकर राज्य करने लगा । एक दिन राजा अपनी रानी और मंत्रीको साथ लेकर वनक्रीड़ा करनेके लिये गया । वहाँ एक सरोवर के समीप मुंजके ( कांस के ) खेत में राजा टहल रहा था कि अचानक उसकी दृष्टि एक बालकपर पड़ी, जो मुंजके पेड़ोंकी ओटमें पड़ा हुआ अंगूठा चूस रहा था । उसे देखते ही राजाके हृदयमें प्रेमका संचार हुआ । चटसे चालक को उठाकर वह सरोबरके समीप बैठी हुई रानीके पास आया और उसकी गोद में बालकको रखकर बोला, प्रिये, देखो यह कैसा प्यारा और सम्पूर्ण श्रेष्ठ लक्षणोंसे संयुक्त बालक है, इसे थोड़े समय हृदयसे लगाकर आनन्दानुभवन तो करो । रानी पुत्रको गोद में ले विहँसकर बोली, नाथ, आप यह मनोमोहन बालक कहांसे ले आये ? राजाने कहा, मैं इस खेतमें टहल रहा था कि अचानक एक मुंजके पेड़के नीचे इसपर मेरी दृष्टि जा पड़ी। मंत्री से भी राजाने यह सब सच्चा वृत्तान्त कह दिया | उसने सम्मति दी कि महाराज, यह एक होनहार चालक है । आपके सौभाग्यसे इसकी प्राप्ति हुई है । अब नगर में चलकर महाराणीका गूढगर्भ प्रगट कीजिये और पुत्रोत्सव मनाइये । ऐसा करनेसे लोगों को कुछ सन्देह न होगा । समझेंगे कि महाराणी के पहलेसे गर्भ होगा परन्तु किसी कारण से प्रगट नहीं किया गया था । मंत्रीकी सम्मति राजाको पसन्द आई और फिर नगर में आकर ऐसा ही किया गया । घर घर बंधनवारे बांधे गये । उत्सव मनाया जाने लगा । *

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 471