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* चौबीस तीर्थकर पुराण *
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एक दिन भगवान् वृषभदेव राजसभामें सुवर्ण सिंहासनपर बैठे हुए थे। उनके आस पासमें और भी अनेक राजा सामन्त पुरोहित मन्त्री आदि बैठे हुए थे। इतने में उपासना करनेके लिये अनेक देव देवियोंके साथ सौधर्म स्वर्गका इन्द्र आया। आते समय इन्द्र सोचता आता था कि भगवान् वृषभदेव अबतक सामान्य मनुष्योंकी भांति विषय वासनामें फंसे हुए हैं । जबतक ये विषय वासनासे हटकर मुनि मार्गमें पदार्पण नहीं करेंगे तबतक संसारका कल्याण होना मुश्किल है इसलिये किसी छलसे आज इन्हें विषय भोगोंसे विरक्त बना देनेका उद्योग करना चाहिये।' यह सोचकर उसने राज सभामें एक नीलाञ्जना नामक अप्सराको जिसकी आयु अत्यन्त अल्प रह गई थी नृत्य करनेके लिये खड़ा किया । जब नीलाञ्जना नृत्य करते करते क्षण एकमें विजलीकी भांति विलीन हो गई तब इन्द्रने रसमें भङ्ग न हो इसलिये उसीके समान रूप और वेष भूषावाली दूसरी अप्सरा नृत्य स्थलमें खड़ी कर दी। वह भी नीलाञ्जनाकी तरह हाव भाव पूर्वक मनोहर अभिनय दिखाने लगी। सामान्य जनताको इस सब परिवर्तनका कुछ भी पता नहीं लगा पर भगवान की दिव्य दृष्टि से यह समाचार छिपा न रहा। वे नीलाञ्जनाके अदृश्य होते ही संसारसे एकदम उदास हो गये । इन्द्रने अपनी चतुराईसे जो दूसरी अप्सरा खड़ी की थी उसका उनपर कुछ भी असर नहीं हुआ। वे सोचने लगे-'कि यह शरीर हवाके वेगसे कम्पित दीप शिखाकी नाई नश्वर है, यह लक्ष्मी विजलोकी चमककी तरह क्षण भंगुर है, यौवन संध्याकी लालीके समान देखते देखते नष्ट हो जाता है और यह विषय सुख समुद्रकी लहरोंके समान चञ्चल है। इन्द्रकी आज्ञासे नृत्य करती हुई यह कमलनयिनी देवी भी जब आयु क्षीण हो जानेपर इस अवस्था-मृत्युको प्राप्त हुई है तब कौन दूसरा संसारमें अमर होगा ? देवोंके सामने मनुष्योंकी आयु ही कितनी है ? यह लक्ष्मी विषराशि-समुद्रसे उत्पन्न हुई है तब भी लोग इसे अमृत सागरसे उत्पन्न हुई बतलाते हैं । जो शरीर इस आत्माके साथ दूध और पानीकी तरह मिला हुआ है-सुख दुःखमें साथ देता है वह भी जब समय पाकर आत्मासे न्यारा हो जाता है तब बिलकुल न्यारे रहनेवाले स्त्री, पुत्री, पुत्र,