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* चौबीस तीर्थक्कर पुराण *
वसके दिन रात्रिके पिछले भागमें जवकि रोहिणी नक्षत्रका उदय था, ब्रह्म मुहूर्नके कुछ समय पहले महारानी विजय सेनाने ऐरावत आदि सोलह स्वप्न देखे और उनके बाद अपने मुंहमें एक मत्त हस्तीको प्रवेश करते हुए देखा।
सवेरा होते ही महारानीने स्वप्नोंका फल जितशत्रुसे पूछा सो उन्होंने देशावधि रूप लोचनसे देखकर कहा कि देवी ! तुम्हारे कोई तीर्थंकर पुत्र होगा उसीके पुण्य बलके कारण छह माह पहलेसे ये प्रतिदिन रत्न वरस रहे हैं और आज आपने ये सोलह स्वप्न देखे हैं। स्वप्नोंका फल सुनकर विजयसेना आनन्दसे फूली न समाती थी। जिस समय इसने स्वप्नमें मुहमें प्रवेश करते हुए गन्ध हस्तीको देखा था उसी समय अहमिन्द्र विमल वाहनका जीव विजय विमानसे चयकर उसके गर्भमें अवतीर्ण हुआ। उस दिन देवोंने आकर साकेत पुरीमें खूब उत्सव किया था।
धीरे-धीरे गर्भ पुष्ट होता गया, महाराज जितशत्रुके घर वह रत्नोंकी धारा गर्भके दिनोंमें भी पहलेकी तरह ही वर्षती रहती थी। भावीपुत्रके अनुपम अतिशयका ख्यालकर महाराजको बहुत आनन्द होता था। जब गर्भका समय व्यतीत हो गया तब माघ शुक्ल दशमीके दिन महारानी विजयसेनाने पुत्र रत्नका प्रसव किया। वह पुत्र जन्मसे ही मति, श्रुत और अवधि इन तीन ज्ञानोंसे शोभायमान था । उसकी उत्पत्तिके समय अनेक शुभ शकुन हुए थे। उसी समय देवोंने सुमेरु पर्वतपर ले जाकर उसका जन्माभिषेक किया और और अजित नाम रखा । भगवान अजितनाथ धीरे-धीरे बढ़ने लगे। वे अपनी वाल सुलभ चेष्टाओंसे माता पिता तथा बन्धु वगै आदिका मन प्रमुदित करते थे। आपसके खेल-कूदमें भी जब इनके भाई इनसे पराजित होते जाते थे तब वे इनका अजित नाम सार्थक समझने लगते थे। __ भगवान आदिनाथको मुक्त हुए पचास लाख करोंड़ सागरवीत जानेपर इनका जन्म हुआ था। उक्त अन्तरालमें लोगोंके हृदयमें धर्मके प्रति जो कुछ शिथिलता सी हो गई थी। इन्होंने उसे दूरकर फिरसे धर्मका प्रद्योत किया था। इनके शरीरका रंग तपे हुए सुवर्णकी नाई था। ये बहुत ही वीर और क्रीड़ा चतुर पुरुष थे। अनेक तरहकी क्रीड़ा करते हुए जब इनके अठारह लाख