Book Title: Chobisi Puran
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Dulichand Parivar

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Page 410
________________ २४० * चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * ध्यानकर जिसके प्रभावसे वे दोनों महा विभूतिके धारक धरणेन्द्र और पद्याबती हुए। बहुत समझानेपर भी जब उस.महीपाल तापसने अपनी हठ नहीं छोड़ी तब वे मित्रोंके साथ अपने घर लौट आये। महीपाल तापसको भी अपने इस अनादरसे बहुत दुःख हुआ। जिससे आर्तध्यानसे मरकर संवर नामका ज्योतिषी देव हुआ। ___ जब भगवान पार्श्वनाथकी आयु तीस वर्षकी हो गई तब अयोध्या नगरके स्वामी राजा जयसेनने उन्हें उत्तमोत्तम भेट देनेके लिये किसी दूतको भेजा कुमार पार्श्वनाथने बड़ी प्रसन्नतासे उसकी भेंट स्वीकार की और दूतका खूब सम्मान किया। मौका पाकर जब उन्होंने दूतसे अयोध्याका समाचार पूछा तब दूतने पहले यहाँपर उत्पन्न हुये वृषभनाथ आदि तीर्थंकरोंका वर्णन किया। राजा रामचन्द्र, लक्ष्मण आदि की वीर चेष्टाओंका व्याख्यान किया और फिर शहरकी शोभाका निरूपण किया । दूतके मुखसे तीर्थंकरोंका हाल सुनकर उन्होंने सोचा कि मैं भी तीर्थंकर कहलाता हूँ। पर इस थोते पदसे क्या ? मैंने सचमुवमें एक सामान्य मनुष्यकी तरह अपनी आयुके तीस वर्ष यूंही गमा दिये । इस प्रकार विचार करते उन्हें आत्म ज्ञान प्राप्त हो गया जिससे उन्होंने विषय वासनाओंसे मोह छोड़कर दीक्षा लेनेका पक्का निश्चय कर लिया। उन्हें दीक्षा लेनेके लिये तत्र देखकर राजा विश्वसेन आदिने बहुत कुछ समझाया पर उन्होंने किसीकी एक न मानो। उसी समय लौकान्तिक देवोंने आकर उनके आदर्श विचारोंका समर्थन किया तथा सौधर्मेन्द्र आदिने आकर दीक्षा कल्याणकका उत्सव मनाया। भगवान पार्श्वनाथ अनेक राजकुमारियोंके आशा घ.धन तोड़कर देव निर्मित 'विमला' पालकोपर सवार होकर अश्व वन में पहुंचे और वहाँ तेलाका नियम लेकर तीन सौ राजाओंके साथ पौष कृष्ण एकादशी के दिन सवेरेके समय दीक्षित हो गये। बढ़ती हुई विशुद्धिके कारण उन्हें दीक्षा लेते ही मनःपर्यय ज्ञान प्राप्त हो गया था । दीक्षा कल्याणकका उत्सव समाप्त कर देव लोग अपने अपने स्थानोंपर चले गये। चौथे दिन भगवानने आहार लेनेके लिये गुलम सेटपुरमें प्रवेश किया। वहां उन्हें धन्य नामक राजाने विधिपूर्वक उत्तम आहार दिया। आहारसे - -

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