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* चौवीस तीर्थक्कर पुराण *
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स्वीकारकर यथा शक्ति व्रत विधान ग्रहण किये। दीक्षा लेने के कुछ समय बाद ही इन्द्रभूतिको सात ऋद्धियां और मनःपर्यय ज्ञान प्राप्त हो गया था। यही भगवान् वर्द्धमानका प्रथम गणधर हुआ था। गोतम गांवमें रहनेके कारण इन्द्रभूतिका ही दूसरा नाम गोतम था। भगवान अर्द्धमागधी भाषामें पदार्थों का उपदेश करते थे और गौतम इन्द्रभूति गणधर उसे ग्रंथ रूपसे --अङ्ग पूर्व रूपसे संकलित करते जाते थे। कालक्रमसे भगवान महावीरके गौतमके सिवाय वायुभूति, अग्निभूति, सुधर्म, मौर्य, मौन्द्रय, पुत्र, मैत्रेय, अब म्पन, अन्धवेल और प्रभास ये दश गणधर और थे। इनके सिवाय इनके समवसरणमें तीन सौ ग्यारह द्वादशाङ्गके वेत्ता थे, नौ हजार नौ सौ शिक्षक थे तेरह सौ अवधि ज्ञानी थे, सात सौ केवल ज्ञानी थे, नौ सौ विक्रिया ऋद्धिके धारक थे, पांच सौ मनः पर्यय ज्ञानी थे और चार मौ वादी थे। इस तरह सब मिलाकर चौदह हजार मुनिराज थे । चन्दना आदि छत्तीस हजार आर्थिकाएं थीं, एक लाख श्रावक थे, तीन लाख श्राविकाएं थी. असंख्यात देवदेवियां और संख्यात तिथंच थे। इन सबसे वेष्ठित होकर उन्होंने नय प्रमाण और निक्षेपोंसे वस्तुका स्वरूप बतलाया। इसके अनन्तर कई स्थानों में विहार कर धर्मामृतकी वर्षा की।
इन्हींके समयमें कपिलवस्तुके राजा शुद्धोधनके गौतम बुद्ध नामका पुत्र था जो अपने विशाल ऐश्वर्यको छोड़कर साधु बन गया था। साधु गौतम बुद्धने अपनी तपस्यासे महात्मा पद प्राप्त किया था। महात्मा बुद्ध जगह-जगह घूमकर बौद्धधर्मका प्रचार किया करते थे। बुद्धके अनुयायी बौद्ध और महावीरके अनुयायी जैन कहलाते थे। यद्यपि उस समय जैन और बौद्ध ये दोनों सम्प्रदाय वैदिक विधान बलि हिंसा आदिका विरोध करनेमें पूरी-पूरी शक्ति लगाते थे तथापि उन दोनों में बहुत मतभेद था। बौद्ध और जैनियोंकी दार्शनिक तथा आचार विषयक मान्यताओंमें बहुत अन्तर था जो कुछ भी हो पर यह निसन्देह कहा जा सकता है कि वे दोनों उस समयके महापुरुष थे, दोनों का व्यक्तित्व खुब बढ़ा चढ़ा था। जबतक महावीरकी छमस्थ अवस्था रही तबतक प्रायः वुद्धके उपदेशोंका अधिक प्रचार रहा। पर जब भगवान् महा.
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