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* चौबीस तीर्थवर पुराण *
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वीर केवल ज्ञानी होकर दिव्य ध्वनिके द्वारा उपदेश करने लगे थे तव बुद्धका माहात्म्य बहुत कुछ कम हो गया था। राजा श्रेणिक जैसे कट्टर धौद्ध भी महावीरके अनुयायी बन गये थे अर्थात जैनी हो गये थे। एक जगह गौतम बुद्धने अपने शिष्योंके सामने भगवान् महावीरको सर्वज्ञ स्वीकार किया था। और उनके वचनों में अपनी आस्था प्रकट की थी।
पूर्ण ज्ञानी योगी भगवान् महावीरने पहले तो वैदिक वलिदान तथा अन्य कुरीतियोंको चन्द करवाया था । और फिर अपने मार्मिक धार्मिक उपदेशोंसे, चौद्ध, नैयायिक, सांख्य आदि मत मतान्तरोंकी मान्यताओंका खण्डन कर स्यादवाद रूपसे जनधर्मकी मान्यताओंका प्रकाश किया था। __एक दिन भगवान महावीर विहार करते हुए राजगृह नगरमें आये और वहांके विपुलाचल पर्वतपर समवशरण सहित विराजमान हो गये। उस समय राजगृह नगरमें राजा श्रेणिकका राज्य था । पहिले कारणवश श्रेणिक राजाने बौद्धधर्म स्वीकार कर लिया था। परन्तु चेलिनी रानीके बहुत कुछ प्रयत्न करनेपर उन्होंने बौद्धधर्मको छोड़कर पुनः जैनधर्म धारण कर लिया था। जब उन्हें विपुलाचलपर महावीर जिनेन्द्र के आगमनका समाचार मिला तब वह समस्त परिवारके साथ उनकी वन्दनाके लिये गया और उन्हें नमस्कारकर मनुष्योंके कोठेमें बैठ गया। भगवान महावीरने सुन्दर सरस शब्दों में पदार्थों का विवेचन किया जिसे सुनकर राजा श्रोणिकको क्षायिक सम्यग्दर्शन प्राप्त हो गया। क्षायिक सम्यगदर्शन पाकर उसे बड़ी ही प्रसन्नता हुई। राजा श्रोणिकको उनकं प्रति इतनी गाढ़ श्रद्धा हो गई थी कि वह उनके पास प्रायः नित्य प्रति जाकर तत्वोंका उपदेश सुना करता था।
श्रोणिकको आसन्न भव्य समझकर गौतम गणधर वगैरह भी उसे खूब उपदेश दिया करते थे। प्रथमानुयोगका उपदेश तो प्रायः श्रोणिकके प्रश्नोंके अनुसार ही किया गया है । श्रेणिकने उन्हींके पासमें दर्शन विशुद्धि आदि सोलह भावनाओंका चिन्तवनकर तीर्थङ्कर प्रकृतिका वन्ध भी कर लिया था। जिससे वह आगामी उपसर्पिणीमें पद्मनाभ नामके तीर्थङ्कर होंगे।
'भगवान महावीरका विहार, विहार प्रान्तमें बहुत अधिक हुआ है। राज