Book Title: Chobisi Puran
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Dulichand Parivar

View full book text
Previous | Next

Page 421
________________ *चौवीस तीर्थकर पुराण* २५१ ण आयु थी । तीन हाथका शरीर था, शुक्ल लेश्या थी । वह वाईस हजार वर्ष में एकवार मानसिक आहार ग्रहण करता और बाईस पक्षके बाद एकवार श्वासोच्छ्वास लेता था। पाठकोंको जानकर हर्प होगा कि यही इन्द्र आगे चलकर वर्द्धमान तीर्थकर होगा- भगवान् महावीर होगा । कहाँ और कब ? सो सुनिये [२] वर्तमान परिचय भगवान पार्श्वनाथ के मोक्ष चले जाने के कुछ समय बाद यहां भारतवर्ष में अनेक मत मतान्तर प्रचलित हो गये थे। उस समय कितने ही मनुष्य स्वर्ग प्राप्ति के लोभ से जीवित पशुओं को यज्ञ की बलि बेदियों में होम देते थे। कितने ही बौद्धधर्म की क्षणिक वादिता को अपना कर दुखी हो रहे थे। और कितने ही लोग साख्य नैयायिक तथा वेदान्तियोंके प्रपञ्च में पड़कर आत्महित से कोसों दूर भाग रहे थे। उस समय लोगों के दिलों पर धर्मका भूत बुरी तरह से चढ़ा हुआ था। जिसे भी देखो वही हरएक व्यक्तिको अपनी ओर-- अपने धर्म की ओर खींचने की कोशिश करता हुआ नजर आता था । उद्दण्ड धर्माचार्य धर्म की ओटमें अपना स्वार्थ गांठते थे। मिथ्यात्व यामिनीका घना तिमिर सब ओर फैला हुआ था। उसमें दुष्ट उलूक भयङ्कर घूत्कार करते हुए इधर उधर घूमते थे । आततायिओं के घोर आतङ्क से यह धरा अकुला उठी थी । रात्रि के उस सघन तिमिर व्याकुल होकर प्रायः सभी सुन्दर प्रभात का दर्शन करना चाहते थे। उस समय सभी की हिष्ट प्राची की ओर लग रही थी। वे सतृष्ण लोचनों से पूर्वकी ओर देखते थे कि प्रातः काल की ललित लालिमा आकाश में कब फैलती है। एकने ठीक कहा है--कि, सृष्टि का क्रम जनता की आवश्यकतानुसार हुआ करता है । जब मनुष्य ग्रीष्मकी तप्त लूसे व्याकुल हो उठते हैं तब सुन्दर श्यामल बादलों से आकाश को आवृत कर पावस ऋतु आती है। वह शीतल और स्वादु सलिल की वर्षा कर जनता का सन्ताय दूर कर देती है । पर जब मेघों की घनघोर वर्षा, निरन्तर के दुर्दिन, बिजली की कड़क, मेघों की गड़गड़ाहट और 'मलिन पङ्क से मन म्लान हो जाता है तब स्वर्गीय अप्सरा - % 3D ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435