Book Title: Chobisi Puran
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Dulichand Parivar

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Page 414
________________ २४४ * चौबीस तीर्थकर पुराण * - अवस्थामें ही थे और महाराज नाभिराज भी मौजूद थे इसलिये उसके जन्म का खूब उत्सव मनाया गया था । जय वह घड़ा हुआ तय अपने पितामह भगवान् वृषभदेवके साथ देखा देखी मुनि हो गया। उस समय और भी कच्छ महाकच्छ आदि चार हजार राजा मुनि हो गये थे पर वे सभी भूख प्यासकी वाधासे दुःखी होकर भ्रष्ट हो गये थे । वह मरीचि भी मुनि पदसे पतित हो जंगलोंमें कन्दमूल खाने और तालावों में पानी पीनेके लिये गया। तय वन देवताने प्रकट होकर कहा कि-'यदि तुम यति वेषमें रहकर यह अनाचार करोगे तो हम तुम्हें दण्डित करेंगे । देवताओंके वचन सुनकर उसने वृक्षोंके घल्कल पहिनकर दिगम्बर वेषको छोड़ दिया और मनमानी प्रवृत्ति करने लगा। उसने कपिल आदि बहुतसे अपने अनुयायी शिष्य धनाकर उन्हें सांख्यमतका उपदेश दिया। ___ जब भगवान् आदिनाथने समवसरणके मध्यमें विराजमान होकर दिव्य उपदेश दिया तब उन पतित साधुओंमें बहुतसे साधु पुनः जैन धर्ममें दीक्षित हो गये । पर मरीचिने अपना हठ नहीं छोड़ा । वह हमेशा यही कहता रहा कि जिस तरह आदिनाथने एकमत चलाकर ईश्वर पदवी प्राप्त की है उसी तरह मैं भी अपना मत चलाकर ईश्वर पदवी प्राप्त करूंगा। इस तरह वह कन्दमूलका भक्षण करता, शीतल जलसे स्नान करता वृक्षोंके बल्कल पहिनता और सांख्य मतका प्रचार करता हुआ यहां वहां घूमता रहा । आयुके अन्तमें कुछ शान्त परिणामोंसे मरकर पांचवें स्वर्गमें देव हुआ। वहां उसकी आयु दश सागर की थी। आयु पूर्ण होनेपर वह वहांसे चयकर साकेत नगरके कपिल ब्राह्मणकी काली नामक स्त्रीसे जटिल नामका पुत्र हुआ। जब वह बड़ा हुआ तब उसने परिव्राजक-सांख्य साधुकी दीक्षा लेकर पहलेके समान सांख्य तत्त्वोंका प्रचार किया। और आयुके अन्तमें मरकर सौधर्म स्वर्गमें देव हुआ। वहां दो सागरतक दिव्य सुखोंका अनुभव कर इसी भरत क्षेत्रके स्थूणागार नगरमें भारद्वाज ब्राह्मणके घर उसकी पुष्पदत्ता भार्यासे पुष्पमित्र नामका पुत्र हुआ। वहां भी उसने परिव्राजककी दीक्षा लेकर सांख्य तत्त्वोंका प्रचार किया और शान्त परिणामोंसे मरणकर सौधर्म स्वर्गमें देवका पद पाया। वहां - -

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