Book Title: Chobisi Puran
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Dulichand Parivar

View full book text
Previous | Next

Page 412
________________ २४२ * चौबीस तीण्डर पुराण * प्राप्त होते ही समस्त देवोंने आकर उनका ज्ञान कल्याणक किया ।कुवेरने समव शरणकी रचना की । उसके मध्यमें स्थित होकर उन्होंने चार माह बाद मौन भङ्ग किया-दिव्य ध्वनिके द्वारा समस्त पदार्थोका व्याख्यान किया। उनके समयमें जगह जगहपर वैदिक धर्मका प्रचार बढ़ा हुआ था, इसलिये उन्होंने प्रायः सभी आर्य क्षेत्रोंमें घूम-घूमकर उसका विरोध किया और जैनधर्मका प्रचार किया था। ___भगवान पार्श्वनाथके समवसरणमें स्वयम्भुव आदि दश गणधर थे, तीन सौ पचास द्वादशाङ्गाके जानकार थे, दश हजार नौ सौ शिक्षक थे, चौदह सौ अवधि ज्ञानी थे, सात सौ पचास मनः पर्यय ज्ञानी थे, एक हजार केवल ज्ञानी थे, इतने ही विक्रिया ऋद्धिके धारक थे, और छह सौ वादी थे। इस तरह सब मिलाकर सोलह हजार मुनिराज थे। सुलोचना आदिको लेकर छत्तीस हजार आर्यिकाएं थीं, एक लाख श्रावक थे, तीन लाख श्राविकाएं, असंख्यात् देवदेवियां और संख्यात तिर्यञ्च थे। __इन सबके साथ उन्होंने उनहत्तर वर्ष सात माहतक विहार किया। उस समय इनकी बहुत ही ख्याति थी । हठवादी इनकी युक्तियोंसे बहुत डरते थे। जब इनकी आयु एक माहकी बाकी रह गई तब वे छत्तीस मुनियोंके साथ योग निरोध कर सम्मेद शैलपर विराजमान हो गये। और वहींसे उन्होंने श्रावण शुक्ला सप्तमीके दिन विशाखा नक्षत्रमें सवेरेके समय अघातिया कर्मोका नाशकर मोक्ष लाभ किया। देवोंने आकर भक्ति पूर्वक निर्वाण कल्याणकका उत्सव किया भगवान् पार्श्वनाथके सर्पका चिह्न था। - - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435