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* चौबीस तीर्थङ्कर पुराण *
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एक हजार राजाओंके साथ जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली। उन्हें दीक्षाके समय ही मनः पर्यय ज्ञान हो गया था। दो दिनोंके बाद वे आहार लेनेके लिये वर्द्धमानपुर नामके नगरमें गये सो वहां महाराज सोमदत्तने पड़गाहकर उन्हें भक्ति पूर्वक आहार दिया। पात्रदानके प्रभावसे देवोंने सोमदत्तके घर पर पञ्चाश्चर्य प्रकट किये थे । सो ठीक ही है-जो पात्रदान स्वर्ग-मोक्षका कारण है उससे पंचाश्चर्योंके प्रकट होने में क्या आश्चर्य है।
भगवान् पद्मप्रभ आहार लेकर पुनः घनमें लौट आये और आत्मध्यानमें लीन हो गये। इस तरह दिन, दो दिन, चार दिनके अन्तरसे भोजन लेकर तपस्याएं करते हुए उन्होंने छद्मस अवस्थाके छः माह मौनपूर्वक बिताये । फिर क्षपक श्रेणी चढ़कर शुक्ल ध्यानसे घातिया कर्मों का नाश किया, जिससे उन्हें चैत्र शुक्ला पौर्णमासीके दिन दोपहरके समय चित्रा नक्षत्रमें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। इन्होंने आकर ज्ञान कल्याणकका उत्सव मनाया। कुवेरने पूर्वकी तरह समवसरण धर्म सभाकी रचना की। उसके मध्यमें विराजमान होकर उन्होंने अपने दिव्य उपदेशसे सबको सन्तुष्ट किया। जब वे बोलते थे, तब ऐसा मालूम होता था मानो कानोंमें अमृतकी वर्षा हो रही है। जीव अजीव आदि तत्वोंका वर्णन करते हुए जब उन्होंने संसारके दुःखोंका वर्णन किया, तब प्रत्येक श्रोताके शरीरमें रोंगटे खड़े हो गये। उस समय कितने ही मनुष्य गृह परित्याग कर मुनि हो गये थे और कितने ही श्रावकोंके व्रतोंमें दीक्षित हुए थे। ___इन्द्रकी प्रार्थना सुनकर उन्होंने प्रायः समस्त आर्य क्षेत्रोंमें बिहार किया जिससे सब जगह जैन धर्मका प्रचार खूब बढ़ गया था। वे जहां भी जाते थे वहींपर अनेक मनुष्य दीक्षित होकर उनके संघमें मिलते जाते थे, इसलिए अन्तमें उसके समवसरण में धर्मात्माओंकी संख्या बहुत बढ़ गई थी। आचार्य गुणभद्रने लिखा है कि उनके समवसरणमें बज्र, चामर आदि एक सौ दश गणधर थे,दो हजार तीन सौ द्वादशांगके वेत्ता थे,दो लाख उनहत्तर उपाध्याय शिक्षित थे, दश हजार अवधिज्ञानी थे, बारह हजार केवल ज्ञानी थे, दश हजार तीन सौ मनापर्यय ज्ञानी थे, सोहल हजार आठ सौ विक्रिया ऋद्धिके