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* चौधोम तीर्थावर पुराण *
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हों तथापि उस उत्कृष्ट स्तोताके स्तुतिका फल होता है। इस तरह संमारमें अपनी आधीनताके अनुसार जपकि हितका मार्ग मुलभ हो रहा है, तब कौन विद्वान हमेशा पूजनीय भगवान नमिनाथको नहीं पूजेगा? अर्थात सभी पूजेंगे।"
(१) पूर्वभव वर्णन जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रगें एक वत्स नामका देश है, उसकी कौशाम्बी नामकी नगरीमें किसी समय पार्थिव नामका राजा राज्य करता था। पार्थिवकी प्रधान पत्नीका नाम सुन्दरी था। ये दोनों राज दम्पति सुखसे काल यापन करते थे। कुछ समय बाद इनके सिद्धार्थ नामका पुत्र पैदा हुआ। सिद्धार्थ बड़ा ही होनहार वालक था। जब वह बड़ा हुआ तब राजा पार्थिवने उसे युवराज वना दिया । एक दिन पार्थिव महाराज मनोहर नामके बगीचेमें घूम रहे थे। वहींपर उन्हें एक मुनिवर नामके साधुके दर्शन हुये। राजाने उन्हें भक्तिसे शिर झुकाकर नमस्कार किया थोर उनके मुखसे धर्मका स्वरूप सुना । धर्मका स्वरूप सुन चुकनेके बाद उसने उनसे अपने पूर्वभव पूछे तब मुनिवर मुनिराजने अवधिज्ञान रूपी नेत्रोंसे १८ देखकर उसके पूर्वभव कहे । अपने पूर्वभवोंका समाचार जानकर राजा पार्थिवको वैराग्य उत्पन्न हो गया। उसने घर आकर युवराज सिद्धार्थको राज्य दिया और फिर धनमें पहुंचकर उन्हीं मुनिराजके पास जिन दीक्षा ले ली । इधर सिद्धार्थ भी पिताका राज्य पाकर बड़ी कुशलतासे प्रजाका पालन करने लगा। काल क्रमसे सिद्धार्थके एक श्रीदत्त नामका पुत्र हुआ जो अपने शुभ लक्षणोंसे कोई महापुरुष मालूम होता था। किसी समय राजा सिद्धार्थको अपने पिता-पार्थिव मुनिराजके समाधि मरणका समचार मिला जिससे वह उसी समय विषयोंसे विरक्त होकर मनोहर नामक घनमें गया
और वहां महावल नामक केवलीके दर्शन कर उनसे तत्वोंका स्वरूप पूछने लगा केवलीश्वर महावल भगवानके उपदेशसे उसका वैराग्य पहलेसे और भी अधिक बढ़ गया । इसलिये वह युवराज श्रीदत्तके लिये राज्य देकर उन्हीं केवली भगवानकी चरण छायामें दीक्षित हो गया। उनके पास रहकर उसने क्षायिक सम्यग्दर्शन प्राप्त किया, ग्यारह अंगोका अध्ययन किया और विशुद्ध हृदयसे
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