Book Title: Chobisi Puran
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Dulichand Parivar

View full book text
Previous | Next

Page 387
________________ * चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * भगवान् नेमिनाथ | घनाक्षरी छन्दः-शोभित प्रियंग अंग, देखे दुख होय भंग, लाजत अनंग जैसे, दीप भानु भास तैं । बाल ब्रह्मचारी उग्र, सेनकी कुमारी जादों, नाथ तैं किनारो कर्म कादो दुःख रास तें ॥ भीम भव काननमें आनन सहाय स्वामी , अहो नेमि नामी तक,आयो तुम्हें तास तें। जैसे कृपा कन्द बन जीवनको बन्द छोड़ि , त्यों हिं दासको खलास कीजै भव फांस तें ॥ [१] पूर्वभव वर्णन जम्बू द्वीपके पश्चिम विदेह क्षेत्रमें सीतोदा नदीके उत्तर किनारेपर एक सुगन्धिल नामका देश है। उसके सिंहपुर नगरमें किसी समय अर्हदास नामका राजा राज्य करता था। उसकी स्त्रीका नाम जिनदत्ता था। दोनों दम्पति साध स्वभावी और आसन्न भव्य जीव थे। वे अपना धर्ममय जीवन बिताते थे। - किसी समय महारानी जिनदत्ताने आष्टाह्निकाके दिनोंमें सिद्ध यंत्रकी पूजा की और उससे आशा की कि, हमारे कोई उत्तम पुत्र हो । ऐसी आशा कर वह प्रसन्न चित्त हो रातमें सुख पूर्वक सो गई। सोते समय उसने सिंह, हाथी, सूर्य, चन्द्रमा और लक्ष्मीका अभिषेक ऐसे पांच शुभ स्वप्न देखे । उसी समय उसके गर्भमें स्वर्गसे आकर किसी पुण्यात्मा जीवने प्रवेश किया। नौ माह बीत जानेपर उसने एक महा पुण्यात्मा पुत्र उत्पन्न किया। उसके उत्पन्न होते ही अनेक शुभ शकुन हुये थे । वह खेल कूदमें भी अपने भाइयोंके द्वारा जीता नहीं जाता था। इसलिये राजाने उसका अपराजित नाम रक्खा था। अपराजित दिन दूना और रात चौगुना बढ़ने लगा। धीरे-धीरे उमने युवाव. - स्थामें प्रवेश किया, जिससे उसके शरीरकी शोभा कामदेवसे भी बढ़कर हो -

Loading...

Page Navigation
1 ... 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435