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* चौबीस तीथङ्कर पुराण *
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लिये ही सबसे अधिक बलवान् समझ रहे हो यह आपका केवल भम है। क्योंकि,श्रीकृष्ण और आप मयमें जो चल है उससे कई गुना अधिक बल इनमें विद्यमान है। बलरामके पचन सुनकर श्रीकृष्णके पक्षपातियोंको बड़ा बुरा मालूम हुआ। श्रीकृष्णभी अबतक पृथिवीपर अपनेसे बढ़कर किसी दूसरेको बलवान् नहीं समझते थे। इसलिये उन्होंने भी बलरामजीके बचनों में असम्मति प्रकट की। अब धीरे धीरे परस्परका विवाद बहुत बढ़ गया तब भगवान् नेमिनाथ और श्रीकृष्णसे बलकी परीक्षा करनी निश्चित हुई । यद्यपि भगवान् नेमि'नाथ इस विषयमें मंजूर नहीं थे तथापि बलराम वगैरहके आग्रहसे उन्हें इस 'कार्यमें शामिल होना पड़ा। उन्होंने हंसते हुये कहा-यदि कृष्ण मेरेसे बलहान हैं तो सिंहासन परसे हमारे इस पांवको चल विचल कर दें' ऐसा कहकर 'उन्होने सिंहासनपर पैर जमा कर रख दिया। श्री कृष्णने उसे चल विचल करनेकी भारी कोशिश की पर वे सफलता प्राप्त न कर सके इससे उन्हें बहुत ही शर्मिन्दा होना पड़ा। भगवान् नेमिनाथका अतुल्य बल देखकर उन्हें शंका हुई 'कि ये हमसे बलवान हैं इसलिये कभी प्रतिकूल होकर हमारे राज्यपर 'आघात न कर दें। श्रीकृष्ण अपने इस सशङ्क हृदयको गुप्त.ही रक्खे रहे।
किसी एक समय शरद ऋतुमें कृष्ण महराज अपने समस्त अन्त' -... साथ बनमें जल क्रीड़ा करनेके लिये गये थे। भगवान ने
.. परक 'थे । कृष्णकी सत्यभामा आदि स्त्रियोंने में ...ननाथ भी उनके साथ उछालते हये अनेक शृङ्गार
रावरमें देखकर नेमिनाथके ऊपर जल ध्य भरे . . ...14 बचन कहे । नेमिनाथने भी चतुराई पूर्वक उनके
'.पनाका यथोचित उत्तर दिया । जलक्रीड़ा कर चुकनेके बाद भगवान् नेमिनाथने सत्यभामासे कहा कि तुम मेरी इस गीली धोतीको धो डालो। तब सत्यभामा क्रोधसे भौंह टेढ़ी करती हुई बोली कि 'आप श्री कृष्ण नहीं हैं जिन्होंने नाग शय्यापर चढ़कर लीला मात्रमें शाङ्ग नामका धनुष चढ़ाया और दिशाओंको गुना-देनेवाला पाञ्चजन्य शङ्ख बजाया था। यदि धोती धुलानेकी शौक हो तो,किसी राजकुमारीको क्यों नहीं फंसा लेते ! सत्यभामाके ताना भरे पचन सुनकर नेमिनाथको कुछ क्रोध हो आया। जिससे वे वहांसे लौटकर आयुधशालामें गये और सबसे पहले.. नाग शय्यापर चढ़कर. शाङ्ग धनुषकी