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* चौवीस तीर्थङ्कर पुराण *
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प्रभावसे बारहवें सहस्रार स्वर्ग में सोलह सागरकी आयुवाला देव हुआ । कमठ के जीव कुक्कुट सको भी उसी समय एक वानरीने मार डाला जिससे वह मरकर धूमप्रभ नामके पांचवें नरकमें महाभयङ्कर नारकी हुआ। वज्रघोषका जीव स्वर्गकी सोलह सागर प्रमाण आयु समाप्तकर जम्बूद्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्र में पुष्कलावती देशके विजया पर्वतपर त्रिलोकोत्तम नगरमें वहांके राजा विद्यु द्वति और रानी विद्युन्मालाके अग्नि बेग नामका पुत्र हुआ। अग्निवेगने पूर्ण यौवन प्राप्तकर किन्हीं समाधि गुप्त नामक मुनिराजके पास जिन दीक्षा धारण कर ली और सर्वतोभद्र आदिक उपवास किये।
मुनिराज अग्निवेग किसी एक दिन हरि नामक पर्वतकी गुफामें ध्यान लगाये हुए विराजमान थे । इतनेमें कमठ-कुक्कुट सर्पके जीवने जो धूमप्रभ नरकसे निकलकर उसी गुफामें बड़ा भारी अजगर हुआ था मुनिराजको देखकर क्रोधसे उन्हें निगल लिया। - मुनिराजने सन्यास पूर्वक शरीर त्यागकर सोलहवें अच्युत स्वर्गके पुष्कर विमानमें देव पदवो पाई। वहां उनको आयु वाईस सागर प्रमाण थी। कमठका जीव अजगर भी मरकर छठवें नरकमें नारकी हुआ।
स्वर्गकी आयु पूरीकर मरुभूति-चज्रघोष-अग्निवेगका जीव इसी जम्बू द्वीपके पश्चिम विदेहक्षेत्रमें पद्यदेशके अश्वपुर नगरमें वहांके राजा वज्रवीर्य और रानी विजयाके वजनाभि नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। नज्रनाभि बड़ा प्रतापी पुरुष था । उसने अपने प्रतापसे छह खण्डोंकी विजय की थी-वह चक्रवर्ती था। किसी एक दिन कारण पाकर चक्रवर्ती बज्रनाभि राज्य-सम्पदाओंसे विरक्त हो गया । इसलिये उसने क्षेमङ्कर मुनिराजके पास जाकर समीचीन धर्मका स्वरूप सुना और उनके उपदेशसे प्रभावित होकर पुत्रको राज्य दे | दिया और स्वयं उनके चरणों में दीक्षा धारण कर ली। कमठ-अजगरका जीव नरकसे निकलकर उसी वनमें एक कुरङ्ग नामका भील हुआ था। जो बड़ा ही कर-हिसक था।
एक दिन बज्रनाभि मुनिराज उसी वनमें आतापन योग लगाये हुए बैठे थे कि उस कुरङ्ग भीलने पूर्वमर्वके संस्कारोंसे उनपर घोर उपसर्ग किये । मुनि