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* चौबीस तीर्थकर पुराण*
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आदिका विशद विवेचन किया। भगवानको केवल ज्ञान प्राप्त हुआ है। यह सुनकर कृष्ण, बलभद्र आदि समस्त यादव अपने अपने परिवारके साथ यन्दनाके लिये समवसरणमें गये। वहां वे सब भगवानको भक्ति पूर्वक नमस्कार कर मनुष्योंके कोठेमें बैठ गये। धार्मिक उपदेश सुननेके बाद श्रीकृष्ण तथा उनकी पटरानियांने अपने अपने पूर्वभवोंका वर्णन सुना। ____ भगवान नेमिनाथकी, सभामें वरदत्त आदि ग्यारह. ११ गणधर थे, चारसौ श्रुतकेवली थे, ग्यारह हजार आठसौ शिक्षक थे, पन्द्रह सौ अवधिज्ञानी थे, नौ सौ मनःपर्ययज्ञानी थे, पन्द्रह सौ केवली थे, ग्यारह सौ विक्रिया ऋद्धिके धारक थे और आठ सौ बादी थे, इस तरह सब मिलाकर अठारह हजार मुनिराज थे। यक्षी, राजमती आदि चालीस हजार आर्यिकायें थीं। एक लाख श्रावक थे, तीन लाख भाविकायें थीं। असंख्यात देव देवियां और संख्यात तिर्यंच थे। इन सबके साथ उन्होंने अनेक आर्य देशोंमें बिहार किया और धर्मामृतकी वर्षा की। भगवान् नेमिनाथने छह सौ निन्यानवे वर्ष नौ महीना और चार दिन तक विहार किया। फिर बिहार छोड़कर आयुके अन्तमें पाँच सौ तेतीस मुनियोंके साथ योग निरोध कर उसी गिरिनारपर विराजमान हो गये और वहींपर शुक्ल ध्यानके द्वारा अघातिया कर्मों का नाश कर आषाढ़ सप्तमीके दिन चित्रा नक्षत्र में रात्रिके प्रारम्भ कालमें मुक्त हो गये। देवोंने आकर निर्वाण कल्याणकका उत्सव किया और सिद्ध क्षेत्रकी पूजा की।
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