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* चौबीस तीर्थकर पुराण *
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नगर है। उसमें किसी समय सूर्यप्रभ नामका राजा राज्य करता था। उसकी महारानीका नाम धारिणी था। उन दोनोंके चिन्तागति, मनोगति और चपलगति नामके तीन पुत्र थे। उनमें चिन्तागति बड़ा मनोगति मझला और चपलगति छोटा पुत्र था। राजा सूर्यप्रभ अपने बुद्धिमान पुत्र और पतिव्रता धारिणीके साथ सुखसे जीवन बिताता था। ___उसी गन्धिल देशको उत्तर श्रेणीमें अरिंदम नगरके राजा अरिंजय और रानी अजितसेनाके एक प्रीतमती नामकी पुत्री थी। प्रीतिमती बहुत ही बुद्धिमती लड़की थी। जब वह जवान हुई और उसके विवाह होनेका समय आया तब उसने प्रतिज्ञा कर ली कि जो राजकुमार मुझे शीघ्र गमनमें जीत लेगा मैं उसीके साथ विवाह करूंगी, किसी दूसरेके साथ नहीं। यह प्रतिज्ञा लेकर उसने मेरु पर्वतकी प्रदक्षिणा देने में एक चिन्तागतिको छोड़कर समस्त विद्याधर राजकुमारोंको जीत लिया। जब प्रीतिमती विजयी चिन्तागतिके गलेमें वरमाला डालनेके लिये गई तब उसने कहा कि इस मालासे तुम मेरे छोटे भाई चपलगतिको स्वीकार करो। क्योंकि उसीके निनित्तसे यह गति युद्ध किया था । चिन्तागतिकी बात सुनकर प्रीतिमतीने कहा कि मैं चपलगतिसे पराजित नहीं हुई हूँ। मैं तो अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार यह रत्नमाला आपके ही श्रीकठमें डालना चाहती हूँ। पर चिन्तागतिने उसका कहना स्वीकार नहीं किया। इसलिये वह विरक्त होकर किसी निवृता नामकी आर्यिकाके पास दीक्षिता हो गई । प्रीतिमतीका साहस देखकर चिन्तागति, मनोगति और चपलगति भी दमवर मुनिराजके पास दीक्षित हो गये और कठिन तपश्चरण कर आयुके अन्तमें माहेन्द्र स्वर्गमें सामानिक देव हुये। वहां उन्होंने महा मनोहर भोग भोगते हुये सुखसे सात सागर व्यतीत किये । आयुके अन्तमें वहांसे च्युत होकर दोनों छोटे भाई मनोगति और चपलगति, जम्बूद्वीपके विदेह क्षेत्रमें पुष्कलावती देशके विजयाध पर्वतकी उत्तर श्रेणीमें गगनवल्लभ नगरके राजा गगनचन्द्र और रानी गगनसुन्दरीके हम अमित गति और अमिततेज नामके पुत्र हुए हैं। किसी एक दिन हमारे पिता गगनचन्द्र पुण्डरीकिणी नगरीको गये वहां स्वयंप्रभ भगवानसे हम दोनोंके अगले-पिछले जन्मोंकी बात पूछी।