Book Title: Chobisi Puran
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Dulichand Parivar

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Page 386
________________ २१६ * चौवीस तीर्थकर पुराण * - - - romaARASHTRA तीसरे पहर पूर्ण ज्ञान-केवल ज्ञान प्राप्त हो गया। उसी समय इन्द्र आदि देवोंने आकर उनकी पूजा की। इन्द्रकी आज्ञा पाकर धनपनिने समवसरणकी रचना की । उसके मध्यमें सिंहासनपर विराजमान होकर उन्होंने नौ वर्षके बाद मौन भंग किया-दिव्य ध्वनिके द्वारा सब पदार्थाका व्याख्यान किया। लोगोंको अनेक सामयिक सुधार वतलाये। उनके प्रभाव, शील और उपदेश से प्रतिवुद्ध होकर कितने ही भव्य जीवोंने मुनि-आयिका, श्रावक और श्राविकाओंके नत धारण किये थे । इन्द्रकी प्रार्थना सुलकर उन्होंने प्रायः समस्त आहार क्षेत्रोंमें विहार किया और सत्य धर्मका ठोस प्रचार किया। उनके समवसरणमें सुप्रभार्य आदि सत्रह गणधर थे, चार सौ पचास, ग्यारह अङ्ग चौदह पूर्वके जानकार थे, बारह हजार छह सौ शिक्षक थे, एक हजार छ: सौ अवधिज्ञानी थे, इतने ही केवलज्ञानी थे, पन्द्रह सौ विक्रिया ऋद्धिके धारक थे, बारह सौ पचास मनापर्यय ज्ञानी थे, और एक हजार वादी शास्त्रार्थ करने वाले थे। इस तरह कुल मिलाकर पीस हजार मुनिराज थे। मगिनी आदि पैंतालीस हजार आर्यिकाएं थीं, असंख्यात देव-देवियां और संख्यात तिथंच थे। भगवान नमिनाथ इन सबके साथ विहार करते थे। निरन्तर बिहार करते-करते जब उनकी आयु केवल एक माह बाकी रह गई तब वे विहार और उपदेश वगैरह बन्द कर सम्मेद शिखर पर जा पहुंचे और वहींपर एक हजार राजाओंके साथ प्रतिमा योग धारण कर विराजमान हो गये । वहींपर उन्होंने वैशाख कृष्णा चतुर्दशीके दिन प्रातः कालके समय अश्विनी नक्षत्रमें शुक्ल ध्यान रूप वह्निके द्वारा समस्त अघातिया कर्मोको जलाकर आत्म स्वातन्त्र्य-मोक्ष लाभ किया। उसी समय देवोंने आ कर सिद्ध क्षेत्रकी पूजा की और निर्वाण कल्याणकका उत्सव किया। 2NGAamdar daraENGE

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