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+ चौबीम नीर्थकर पुराण *
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समस्त प्रमति गृह जगमगा उठा था। उसी समय देवाने आकर उसके जन्म कल्याणकका उत्सव मनाया और नमिनाथ नामसे सम्बोधित किया। महाराज श्री विजयने भी पुत्र-रत्नकी उत्पत्तिके उपलक्षमें करोड़ों रुपयों का दान किया था। जन्मका उत्सव समाप्त कर देव लोग अपने अपने घर चले गये । राजमन्दिरमें भगवान नमिनाथका उचित रूपसे पालन होने लगा।
क्रम-क्रमसे जघ चे तरुण अवस्थाको प्राप्त हुए तय महाराज श्री विजयने उनका योग्य कुलीन कन्याओंके साथ विवाह सम्बन्ध कर दिया और उन्हें युवराज पद पर नियुक्त किया।
भगवान मुनि सुव्रतनाथके मोक्ष जानसे साठ लाख वर्ष बीत जाने पर इन का अवतार हुआ था। इनकी आयु भी इसीमें शामिल है। आयु दश हजार वर्षकी थी। शरीर पन्द्रह धनुप ऊंचा था और शरीरका रङ्ग तपाये हुए सुवर्ण की तरह था। कुमार कालके पच्चीस सौ वर्ष बीत जानेर उन्हें राज्याभिषेक पूर्वक राज्य गद्दी देकर श्री विजय महाराज आत्म-कल्याणकी ओर अग्रसर हुए थे। भगवान नमिनाथने राज्य पाकर दुष्टोंका उच्छेद और साधुओंका अनुग्रह किया । बीच-बीचमें देव लोग सङ्गीत आदिकी गोष्ठियोंसे उनका मन प्रसन्न रखते थे। इस तरह सुख पूर्वक राज्य करते हुए उन्हें पांच हजार वर्ष बीत गये।
एक दिन किसी धनमें घूमते हुए भगवान नमिनाथ वर्षा-ऋतुकी शोभा देख रहे थे कि इतने में आकाशमें घूमते हुए दो देव उनके पास पहुंचे। जव भगवानने उनसे आनेका कारण और परिचय पूछा तब वे कहने लगे-"नाथ इसी जम्बूदीपके विदेह क्षेत्रमें एक वत्सकावती देश है उसके सुसीमा नगरमें अपराजित विमानसे आकर एक अपराजित नामके तीर्थकर हुए हैं। उनके केवल ज्ञानकी पूजाके लिये सब इन्द्रादिक देव आये थे। कल उनके सभवसरणमें किसीने पूछा था कि इस समय भरतक्षेत्रमें भी क्या कोई तीर्थङ्कर है। तब स्वामी अपराजितने कहा था कि इस समय भरतक्षेत्र-बंगाल प्रान्तकी मिथिला नगरीमें नमिनाथ स्वामी हैं, जो कुछ समय बाद तीर्थ कर होकर दिव्य ध्वनिसे संसारका कल्याण करेंगे। वे अपराजित विमानसे आकर वहां उत्पन्न