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* चौबीस तीर्थङ्कर पुराण *
धारी थे और नौ हजार छ: सौ उत्तरवाड़ी थे। इस तरह सब मिलाकर तीन लाख तीस हजार मुनिराज थे। रतिषणको आदि लेकर चार लाख बीस हजार आर्यिकाएं थीं, तीन हजार श्रावक थे, पांच लाख श्राविकाएं थीं, असंख्य देव देवियां और संख्यात तिथंच थे। __भगवान पद्मप्रभ अन्तमें सम्मेद शिखरपर पहुंचे। वहां उन्होंने एक हजार मुनियोंके साथ प्रतिमा योग धारण किया और समस्त योगोंकी प्रवृत्तिको रोककर शुद्ध आत्माके स्वरूपका ध्यान किया। उस समय दिव्य ध्वनि बिहार वगैरह सब बन्द हो गया था। इस तरह एक महीनेतक प्रतिमा योग धारण करनेके बाद वे फाल्गुन कृष्ण चतुर्थीके दिन चित्रा नक्षत्रमें शामके समय शुक्ल ध्यानके प्रतापसे अघातिया कर्मोका क्षय कर मोक्ष स्थानको प्राप्त हुए । देवोंने आकर उनके निर्वाण स्थानकी पूजा की। भगवान पद्मप्रभके कमलका चिन्ह था।
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भगवान सुपार्श्वनाथ - स्वास्थ्यं यदात्यन्तिक मेषपुंसां
स्वार्थों न भोगः परिभंगुरात्मा । तृषोऽनुषंगान्नच ताप शान्ति
रितीदमाख्यद्भगवान सुपार्श्वः॥ -स्वामि समन्तभद्र आत्माका स्वास्थ्य वही है जिसका फिर अन्त न हो, विनाश न हो। | पंचेन्द्रियोंका भोग आत्माका स्वार्थ नहीं है, क्योंकि वह भंगुर है नश्वर है।
और तृष्णाका अनुषंग संसर्ग होनेके कारण उससे सन्तापकी शान्ति नहीं || होती, ऐसा भगवान सुपार्श्वनाथने कहा है: