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• योयोस तीर्थकर पुराण *
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मुनिराज थे। सूत्रता आदि पासठ हजार चारसी आर्यिकायें थीं। दो लाल श्रावक, चार लाख आविकायें, असंख्यात देव देवियां और संपात तीर्यच थे।
घे आयुके अन्तमें सम्मेद शिखर पर पहुंचे और वहां आठ सौ मुनियों के साथ योग निरोध कर ध्यानारूढ़ हो बैठ गये। उसी समय शुक्लध्यानके प्रतापसे आघ.तिया कर्माका संहार कर जेष्ठ शुक्ला चतुर्थीके दिन पुष्प नक्षत्रमें उन्होंने स्वातन्त्र्य लाभ किया। तत्काल देवोंने आकर उनके निवार्ण क्षेत्रकी पूजा की।
श्रीअनन्तनाथ तीर्थकरके मोक्ष जानेके बाद चार सागर बीत जानेपर भगवान् धर्मनाथ हुये थे। इनकी आयु भी इसी प्रमाणमें शामिल है। इनकी पूर्णायु दस लाख वर्षकी थी। शरीर ४५ योजन ऊंचा था और रङ्ग पीला था।
इनकी उत्पत्तिके पहले भारतवर्षमें आधे पल्य तक धर्मका विच्छेद हो गया था पर इन्द्र के उपदेशसे वह सब दूर हो गया था और जैनधर्म-कल्पवृक्ष पुनः लहलहा उठा था।
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भगवान् शान्तिनाथ स्वदोष शान्त्यावहितात्म शान्तिः
- शान्तर्विधाता शरणं गतानाम् । भूयाद्भवक्लेशभयोपशान्त्यै ।
शान्तिर्जिनो.मे भगवान् शरण्यः॥ -आचार्य समन्तभद्र "अपने राग द्वेष आदिदोषोंके दूर करनेसे शान्तिको धारण . करनेवाले शरणमें आये हुये प्राणियों के शान्तिके विधाता और शरणागतोंकी रक्षा करनेमें धुरीण भगवान् शान्तिनाथ हमारे संसार सम्बन्धी क्लेश और भयोंकी शान्तिके लिये होवें । हमारे संसारिक दुःख नष्ट करें।"
. [१] पूर्वभव वर्णन . जम्बूद्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्रमें पुष्कलावती देशकी पुण्डरीकिणी नगरीमें
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