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___ *"चौबीस तीर्थङ्कर पुराण *
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हो गया। उसकी स्त्री मदनवेगी भी आर्यिका हो गई। राजा मेघरथ भी देव रमण बनसे राजधानीमें लौट आये और नीति पूर्वक प्रजाका पालन करने लगे।
एक दिन वह अष्टान्हिको ब्रतकी पूजा कर उपवासकी प्रतिज्ञा लिये हुए स्त्री पुत्रोंके साथ बैठकर धर्म चर्चा कर रहा था कि इतने में उसके सामने भय से कांपता हुआ एक कबूतर आया, कबूतरके पीछे पीछे बड़े बेगसे दौड़ता हुआ एक गीध आया और राजौके सामने खड़े होकर कहने लगा-'कि महाराज ! मैं भूखसे मर रहा हूँ आप दानवीर हैं इसलिये कृपाकर आप यह कबूतर मुझे दे दीजिये। नहीं तो मै मर जाऊंगा
गीधके वचन सुनकर दृढ़रथ (मेघरथका छोटा भाई ) को घड़ा आश्चर्य हुआ। उसने उसी समय राजा मेंघरथसे पूछा कि महाराज ! कहिये, यह गीध मनुष्योंकी बोली क्यों बोल रहा है। अनुज छोटे भाईका प्रश्न सुनकर मेघरथने कहा कि 'जम्बू द्वीपके ऐरावत क्षेत्रमें पदमिनी खेदं नामके नगरमें एक सागरसेन नामका वैश्य रहता था उसको अमितमति स्त्रीसे धनमित्र और नन्दिषेण नामके दो पुत्र थे । वे दोनों धन लोभसे लड़े और एक दूसरेको मार कर ये गीध और कबूतर हुए हैं। और यह गीध मनुष्यकी बोली नहीं बोल रहा है किन्तु इसके ऊपर एक ज्योतिषी देव है। यह आज किसी कारण वश ईशान इन्द्रकी सभामें गया था वहांपर इन्द्रके 'मुखसे हमारी प्रशंसा सुन कर इसे कुछ ईर्षा पैदा हुई जिससे यह मेरी परीक्षा लेनेके लिये यहां आया है और गोधके मुंहसे मनुष्यकी बोली चोल रहा है।" दृढ़रथसे इतना कहकर राजा मेघरथने उस देवसे कहा-भाई । तुम दोनके स्वरूपसे सर्वथा अपरिचित मालूम होते हो। इसीलिये मुझसे गीध लिये कबूतरकी याचना कर रहे हो। सुनो, 'अनुग्रहार्थ स्वस्याति संगोदानम्' निज तथा परके उसकारके लिये अपनी योग्य बस्तुका त्याग करना दान कहलाता है और वह सत्पात्रों में ही दिया जाता है । सत्पात्रे, उत्तम-मुनिराज, मध्यम-श्रावक और जघन्य अवि. रत सम्यग्दृष्टिके भेदसे तीन तरह के होते हैं। देय पदार्थ भी मद्य मांस मधुसे विवर्जित तथा सात्विक हो । अब'कहो यह गीध उनमेसे कौनसा सत्पात्र है ? और यह कबूतर भी क्या देय वस्तु है? राजा मेघरथके वचन सुनकर वह देव
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