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पौवीस समार पुराण
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अपने असली रूपमें प्रकट हुआ और उनकी स्तुति कर अपने स्थानपर वापिस चला गया। कबूतर और गीधने भी मेघरथकी बातें सुनकर आपसका विरोध छोड़ दिया जिससे आयुके अन्त में सन्यास पूर्वक मर कर वे दोनों देव रमण वनौ व्यन्तर हुए । उत्पन्न होते ही उन देवोंने आकर राजा मेघरधकी बहुत ही स्तुति की और अपनी कृतज्ञता प्रकट की।
एक दिन उसने किन्हीं चारण दिधारी मुनिराजको आहार दिया जिस से उसके घरपर देवोंने पञ्चाश्चर्य प्रकट किये। किसी दूसरे दिन वह अष्टा-- न्हिका पर्वमें महापूजा कर और उपवास धारण कर रात्रिमें प्रतिमा योगसे विराजमान था। उसी समय ईषानेन्द्रने मेघरथकी सब बातें जानकर अपनी समामें उसकी धीर बीरताकी खूब प्रशंसा की। इन्द्र के मुखसे मेघरथकी प्रशंसा सुनकर कोई अतिरूपा और सुरूपा नामकी वो देवियां उसकी परीक्षा करनेके लिए आयीं और हाव भाव विलास पूर्वक नृत्य करने लगीं पर-जय वे मेघरथको ध्यानसे विचलित न कर सकी तब उन्होंने देवी रूपमें प्रकट होकर उसकी खूब प्रशंसा की और स्वर्गको चली गई।
किसी दिन उसी इन्द्रने अपनी सभामें मेघरथकी स्त्री प्रियमित्राके सौंदर्य की प्रशंसा की। उसे सुनकर रतिषण और रति नामकी दो देवियां उसकी. परीक्षा करनेके लिये आयीं। जब देवियां उसके महलपर पहुंची तब वह तेल, उबटन लगाकर स्नान कर रही थी। उन देवियोंने छिपकर उसका रूप रेखा और मन में प्रशंसा करने लगी। फिर उन देवियोंने कन्याओंका भेष धारणकर स्त्री पहरेदारके द्वारा उसके.पास सन्देश भेजा कि दो कन्याए आपकी सौन्दर्य सुधाका पान करना चाहती हैं। उत्तरमें रानीने कहला भेजा कि तबतक ठहरो जबतक मैं स्नान न कर लू। प्रियमित्रा स्नानकर उत्तमोत्तम वस्त्र और अलङ्कार पहनकर मिलनेके स्थानमें पहुंची और कन्याओं को आनेकी खबर दी। खबर पाते ही दोनों कन्याएं भीतर पहुंची और रानी प्रियमित्राका रूप देखकर एक दूसरेकी ओर देखने लगीं । जब उनसे उसका; कारण पूछा गया तब वे दोनों बोलीं-महादेवि! नहाते समय हम लोगोंने आपमें जो असीम सौन्दर्य देखा था अब उसका पता नहीं है। कन्याओंकी बात सुनकर प्रियमित्राने राजा
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