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* चौबीस तीपर पुराण -
२०५ योंसे केश लुचकर अलग कर दिये। उन्हें दीक्षा धारण करते ही मनापर्यय ज्ञान प्राप्त हो गया था। तीसरे दिन वे आहारके लिये मिथिलापुरीमें गये। वहां उन्हें नन्दिषेणने भक्ति पूर्वक आहार दिया। पात्रदानसे प्रभावित होकर नन्दिषेणके घरपर देवोंने पंचाश्चर्य प्रकट किये। ____ आहार लेकर भगवान मल्लिनाथ पुन: बनमें लौट आये और आत्म ध्यानमें लीन हो गये। दीक्षा लेनेके छह दिन बाद उन्हें उसी श्वेत पनमें अशोक वृक्षके नीचे जन्म तिथि-मार्गशीर्ष सुदी एकादशीके दिन अश्विनी नक्षत्रमें प्रातःकालके समय दिव्यज्ञान-केवल ज्ञान प्राप्त हो गया। उसी समय इन्द्र आदि देवोंने आकर ज्ञान कल्याणकका उत्सव मनाया। इन्द्रकी आज्ञा पाकर कुवेरने समवसरण धर्मसभाकी रचना की। उसके मध्यमें विराजमान होकर भगवान् मल्लिनाथने अपना छह दिनका मौन भंग किया। दिव्य ध्वनि द्वारा सप्ततत्व, नवपदार्थ, छह द्रव्य आदिका पुष्कल विवेचन किया। चारों गतियोंके दुःखोंका वर्णन किया जिससे प्रभावित होकर अनेक नर नारियोंने मुनि-आर्यिका और श्रावक-श्राविकाओंके व्रत धारण किये। _____ उनके समवसरणमें विशाख आदि अट्ठाईस गणधर पे,साढ़े पांच सौ ग्यारह अंग चौदह पूर्वके जानकार थे। उनतीस हजार शिक्षकथे दो हजार दो सौ अवधिज्ञानी थे,इतने ही केवल ज्ञानी थे, एक हजार चार सौ वादी थे,दो हजार नौ सौ विक्रिया-ऋद्धिके धारक थे और एक हजार सात सौ पचास मनपर्यय ज्ञानी थे। इस तरह सब मिलकर चालीस हजार मुनिराज थे। वन्धुषेणा आदि पचपन हजार आर्यिकाएं थीं, एक लाख श्रावक थे, तीन लाख भाविकाएं थीं, असंख्यात देव देवियां थीं और संख्यात तिर्यञ्च थे।
भगवान् मल्लिनाथने अनेक आर्य क्षेत्रोंमें विहार कर पथभ्रान्त पथिकोंको मोक्षका सच्चा रास्ता बतलाया। जब उनकी आयु सिर्फ एक माहकी बाकी रह गई तब उन्होंने सम्मेद शिखरपर पहुंचकर पांच हजार मुनियोंके साथ प्रतिभा योग धारण कर लिया। और अन्तमें योग निरोधकर फाल्गुन शुक्ला पञ्चमीके दिन भरणी नक्षत्र में शामके समय कर्माको नष्टकर मोक्ष महलमें प्रवेश किया। उसी समय देवोंने आकर सिद्ध क्षेत्रकी पूजा की और निर्वाण कल्याणकका उत्सव मनाकर प्रचुर पुण्यका सञ्चय किया।