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-चौबीस तोथकर पुराण *
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की प्रतीहारी एक-एक कर समस्त राजकुमारोंका परिचय सुनाती जाती थी। पर शृङ्गारबनीकी दृष्टि किसीपर भी स्थिर नहीं हुई। अन्तमें युवराज धर्मनाथ के पास पहुंचनेपर सुभद्राने कहा-'कुमारि ! उत्तर कोशल देश में रत्नपुर नामका एक सुन्दर नगर है। उसमें महाराजमहासेन राज्य करते हैं उनकी महारानीका नाम सुनता है । ये युवराज उन्हींके पुत्र हैं । इनका भगवान धर्मनाथ, नाम है। इनके जन्म होनेके पन्द्रह-माह पहलेसे देवोंने रत्न वर्षा की थी। इस समय भारतवर्ष में इन जैसा पुण्यात्मा दूसरा पुरुष नहीं है।' प्रतीहारीके मुंह से युवराजकी प्रशंसा सुन और उनके दिव्य सौन्दर्यपर मोहित होकर, कुमारी शृङ्गारवतीने लजासे कांपते हुए हाथसे उनके गलेमें वर माला डाल दी। उसी समय सब ओरसे साधु साधुकी आवाज आने लगी । महाराज प्रतापराज युवराजको विवाह वेदिका पर ले गये और वहां उनके साथ विधिपूर्वक शृङ्गारवती का विवाह कर दिया।
शादीके दूसरे दिन भगवान् धर्मनाथ, ससुरालमें किसी ऊंचे आसनपर बैठे हुए थे। इतनेमें पिता महासेनका एक दूत पत्र लेकर उनके पास आया। पत्र पढ़कर उन्होंने प्रतापराजसे कहासे कहा-'कि पिताजीने मुझे आवश्यक कार्यवश शीघ्र ही बुलाया है इसलिये जानेकी आज्ञा दे दीजिये। प्रतापराज़ उन्हें जानेसे न रोक सके। युवराज धर्मनाथ समस्त सेनाका भार सेनापतिपर छोड़कर श्रृंगारवतीके साथ देव निर्मित पुष्पक विमानपर आरूढ़, होकर शीघ्र ही रत्नपुर वापिस आ गये। वहां महाराज महासेनने पुत्र और पुत्रवधूका खुब सत्कार किया। किसी दिन राजा महासेन संसारसे विरक्त होकर राज्यका समस्त भार धर्मनाथपर छोड़कर दीक्षित हो गये। देवोंने राज्याभिषेक कर धर्मनाथका राजा होना घोषित कर दिया। राज्य प्राप्तिके समय उनकी आयु ढाई लाख वर्षकी थी। राज्य पाकर उन्होंने नीति पूर्वक प्रजाका पालन किया जिससे उनकी कीर्ति-वाहिनी सहस्र धारा-हो सब ओर फैल गई। इस तरह राज्य करते हुए जब उनके पांच लाख वर्ष बीत गये तब एक दिन रातके समय उल्कापात देख कर उनका चित्त विषयोंसे सहसा विरक्त हो गया। उन्होंने सोचा कि 'मैं नित्य समझकर जिन पदार्थों में आसक्त हो सकता हूँ वे सब इसी उल्काकी
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