________________
* चौबीस तीर्थकर पुराण *
१४१
हे देव ! आपका शरीर शान्त है, वचन कानोंको सुखा देने वाले हैं और चरित्र सबका उपकार करने वाला है इसलिये हम सब, संसार रूपी विशाल मरुस्थलमें सघन छाया वाले वृक्ष स्वरूप आप सुविधिनाथ-पुष्प दन्तका आश्रय लेते हैं।
[१] पूर्वभव वर्णन पुष्कराध द्वीपके पूर्व मेरुसे पूर्व दिशाकी ओर अत्यन्त प्रसिद्ध विदेह क्षेत्र है उसमें सीता नदीके उत्तर तटपर पुष्कलावती देश है जो अनेक समृद्धिशाली ग्राम नगर आदिसे भरा हुआ है। उसमें एक पुण्डरीकिणी नामकी नगरी है । उसमें किसी समय महापद्म नामका राजा राज्य करता था। वह बहुत ही बलवान था, वुद्धिमान था। उस बाहु बलके साम्हने अनेक अजेय राजाओंको भी आश्चर्य सागरमें गोते लगाने पड़ते थे। उसके राज्यमें खोजने पर भी दरिद्र पुरुष नहीं मिलता था । वह हमेशा-विद्वानोंका समुचित आदर करता था और योग्य वृत्तियां दे देकर उन्हें नई बातोंके खोजनेके लिये, प्रोत्सा हित किया करता था। उसने काम, क्रोध, मद, मात्सर्य, लोभ और मोह इन छह अन्तरङ्ग शत्रुओंको जीत लिया था। समस्त प्रजा उसकी आज्ञाको माला की भांति अपने मस्तकपर धारण करती थी। प्रजा उसकी भलाईके लिये सब कुछ न्यौछावर कर देती थी और वह भी प्रजाकी भलाईके लिये कोई बात उठा नहीं रखता था। ___ एक दिन वहांके मनोहर नामके यनमें महामुनि भूतहित पधारे। नगरके समस्त लोग उनकी बन्दनाके लिये गये । राजा महापद्म भी अपने समस्त परिवारके साथ मुनिराजके दर्शनोंके लिये गया। वह वहांपर मुनिराजकी भव्य मृति और प्रभावक उपदेशसे इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसी समय राज्य सुख, स्त्री सुख आदिसे मोह छोड़ दिया और धनद नामक पुत्रके लिये राज्य देकर दीक्षा ले ली। महामुनि भूतहितके पासारहकर उसने कठिन तपस्थाएं की और अध्ययन कर ग्यारह अंगोंका ज्ञान प्राप्त कर लिया। किसा समय उसने निर्मल हृदयसे दर्शन विशुद्धि आदि सोलह कारण भावनाओं.