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* चौवीस तीर्थकर पुराण *
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लेकर तीन लाख अस्मी हजार आर्यिकाएं थीं। दो लाख श्रावक थे, पांच लाख श्राविकाएं थीं, असंख्यात देव देवियां ओर संख्यात तिर्यंच थे।
सब देशों में बिहार कर चुकनेके बाद वे आयुके अन्त समयमें सम्मेदशिखरपर जा पहुंचे। वहां उन्हों ने एक हजार मुनियों के साथ योग निरोध किया और अन्तमें शुक्ल ध्यानके द्वारा अघातिया कर्माका नाशकर भादौं सुदी अष्टभीके दिन मूल नक्षत्र में सन्ध्याके समय मोक्ष प्राप्त किया। उसी समय इन्द्रादि देवों न आकर उनके निर्वाण कल्याणकी पूजा की। भगवान पुष्पदन्तका ही दूसरा नाम सुविधिनाथ था।
भगवान शीतलनाथ न शीतलाश्चन्दन चन्द्ररश्मयो
न गांगमम्भो नवहार यष्टयः । यथामुनेस्तेऽनघ वाक्यरश्मयः
शमाम्बुगर्भाः शिशिरा विपश्चिताम् ॥ आचार्य समंतभद्र "हे अनघ ! शान्तिरूप जलसे युक्त आपकी वचन रूपी किरणे विद्वानोंके लिये जितनी शीतल हैं उतनी शीतल न चन्द्रमाकी किरणें हैं, न चन्दन है, न गंगानदीका पानी है और न मणियों का हार ही है। आपके वचनोंकी शीतलतामें संसारका संताप क्षण एकमें दूर हो जाता है।"
[२] पूर्वभव परिचय पुष्कर द्वीपके पूर्वार्ध भागमें जो मन्दरगिरि है उससे पूर्वकी ओर विदेह क्षेत्रमें सीतानदीके पश्चिम किनारेपर वत्स नामका देश है। उसके सुसीमा नगरमें राजा पद्मगुल्म राज्य करते थे। वे हमेशा साम, दाम, दण्ड और भेद इन चार उपायोंसे पृथ्वीका पालन करते थे। सन्धि, विग्रह आदि राजोचित