________________
१६४
* चौवीस तीथाहर पुराण *
tài
नभके नीचे बैठकर आत्मध्यान करना चाहिए। ऐमा विचारकर भगवान विमलनाथने दीक्षा धारण करनेका दृढ़ निश्चय कर लिया। उसी समय ब्रह्मलोकने आकर लौकान्तिक देवोंने उनके विचारोंका समर्थन किया। ___अपना कार्य पूरा कर लौकान्तिक देव अपने २ स्थानपर पहुंचे ही होंगे कि चतुनिकायके देव अपनी चेष्टाओंसे वैराग्य गंगाको प्रवाहित करते हुये कम्पिला नगरी आये। भगवान् भी अन्य मनस्क हो पर्वतमालासे उतरकर घरपर आये। वहां उन्होंने अभिषेक पूर्वक पुत्रके लिये राज्य दिया और आप देव निर्मित पालकीपर सवार होकर सवेतुक यन गये। वहां पहुंचकर उन्होंने ओम् नमः सिद्धेभ्यः कहते हुये, माघ शुक्ला चतुर्थीके दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रमें शामके समय एक हजार राजाओंके साथ दीक्षा ले ली। विशुद्धिके बढ़नेसे उन्हें उसी समय मनः पर्ययय ज्ञान प्राप्त हो गया। देव लोग तपः कल्याणक का उत्सव समाप्त कर अपने अपने स्थानों पर चले गये।
भगवान् विमलप्रभ दो दिनका योग समाप्त कर तीसरे दिन आहारके लिये नन्दपुर पहुंचे। यहां उन्हें वहांके राजा जयकुमारने भक्ति पूर्वक आहार दिया। पात्रदानके प्रभावसे प्रभावित होकर जयकुमार महाराजके घरपर पञ्चाश्चर्य प्रकट किये । आहारके बाद वे पुनः बनमें लौट आये और आत्मध्यानमें लीन हो गये। इस तरह दिन दो दिनके अन्तरसे आहार लेते हुए उन्होंने मौन रहकर तीन वर्ष छद्मस्थ अवस्थामें पिताये। इसके बाद उसी सहेतुक बनमें दो दिनके उपवासकी प्रतिज्ञा लेकर जामुनके पेड़के नीचे ध्यान लगाकर विराजमान हुये । जिससे उन्हें माघ शुक्ला षष्टीके दिन शामके समय उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में घातिया कर्मोका नाश होनेसे पूर्णज्ञान-केवलज्ञान प्राप्त हो गया । उसी समय देवोंने आकर ज्ञान कल्याणकका उत्सव किया। इन्हींकी 'आज्ञासे कुबेरने समवसरणकी रचना की। उसके मध्यमें सुवर्ण सिंहासनपर अन्तरीक्ष विराजमान होकर उन्होंने अपना मौनभंग किया, दिव्य उपदेशोंसे समस्त जनताको सन्तुष्ट कर दिया। जब उनका प्रथम उपदेश समाप्त हुआ तब इन्द्रने मधुर शब्दोंमें स्तुति कर उनसे अन्यत्र बिहार करनेकी प्रार्थना की। इन्द्रकी प्रार्थना सुनकर उन्होंने प्रायः समस्त आर्य देशोंमें बिहार किया, अनेक
-
-