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* पोयीम तीर्थकर पुराण *
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पिछले समय सोलह स्वप्न देखे । उसी समय उक्त इन्द्रने स्वर्ग भूमि छोड़कर उसके गर्भमें प्रवेश किया। पतिके मुखसे स्वप्नोंका फल सुनकर सुनन्दा रानीको जो हर्ष हुआ उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। उसी दिन देवोंने आकर स्वर्गीय वस्त्राभूषणोंसे राज दम्पतीकी पूजा की और गर्भ कल्याणकका उत्सव मनाया । माघ कृष्णा द्वादशीके दिन पूर्वापाढ़ नक्षत्र में सुनन्दाके उदरसे भगवान शीतलनाथका जन्म हुआ। देवोंने मेरु पर्वतपर ले जाकर उनका जन्माभिषेक किया और वहांसे आकर भद्रपुरमें धूमधामसे जन्मका उत्सव मनाया । इन्द्रने बन्धु वान्धवोंकी सलाहसे उनका शीतलनाथ नाम रखा जो वास्तव में योग्य था क्योंकि उनकी पावन मूर्ति देखनेसे प्राणि मात्रके हृदय शीतल हो जाते थे । राज परिवारमें बड़े ही दुलारसे उनका पालन हुआ था। पुष्पदन्त स्वामीके मोक्ष जानेके बाद नौ करोड़ सागर बीत जानेपर भगवान शीतलनाथ हुए थे । इनके जन्म लेनेके पहिले पत्यके चौथाई भागतक धर्मका विच्छेद हो गया था। इनकी आयु एक लाख पूर्वकी थी और शरीर नव्ये धनुष ऊंचा था। इनका शरीर सुवर्णके समान स्निग्ध पीत वर्णका था जब आयुका चौथाई भाग कुमार अवस्थामें बीत गया तब इन्हें राज्यकी प्राप्ति हुई थी राज्य पाकर इन्होंने भलीभांति राज्यका पालन किया और धर्म, अर्थ कामका समान रूपसे सेवन किया था।
किसी एक दिन भगवान शीतलनाथ घूमनेके लिये एक वनमें गये थे। जब वे वनमें पहुंचे थे तब बनमें मघ वृक्ष हिम ओससे आच्छादित थे। पर थोड़ी देर बाद सूर्यका उदय होनेसे वह हिम-ओस अपने आप नष्ट हो गई थी। यह देखकर उनका हृदय विषयोंकी ओरसे सर्वथा हट गया। उन्होंने संसारके सब पदार्थीको हिमके समान क्षण भंगुर समझकर उनसे राग भाव छोड़ दिया और बनमें जाकर तप करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसी समय लौकान्तिक देवोंने आकर इनके उक्त विचारों का समर्थन किया जिससे उनकी वैराग्य धारा और भी अधिक वेगसे प्रवाहित हो उठी। निदान आप पुत्रके लिये राज्य सौंपकर देव निर्मित शुक्र प्रभा पालकीपर सवार हो सहेतुक वनमें पहुंचे और वहां माघ कृष्ण द्वादशीके दिन पूर्वाषाढ़ नक्षत्रमें शामके समय