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* चौबीस तीर्थकर पुराण *
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आप परीक्षामें पास हो गये। आप धीर हों, वीर हों, गम्भीर हों। मैं आपके गुणोंसे अत्यन्त प्रसन्न हूँ। अब आप कुछ भी चिन्तान कीजिए, आप विशाल वैभवके साथ कुछ दिनोंमें ही अपने पिताके पास पहुंच जायेंगे। अब सुनिये, मैं आपके जन्मान्तरकी कथा कहता हूँ:__इस भवसे पूर्व तीसरे भवमें आप सुगन्धि देशके राजा थे, आपकी राजधानी 'श्रीपुर' थी। वहां आप श्रीवर्मा नामसे प्रसिद्ध थे। उसी नगरमें शशी और सूर्यनामके दो किसान रहते थे। एक दिन शशीने घरमें सन्धि कर सूर्यका धन हरण कर लिया। जब सूर्यने आपसे निवेदन किया तब आपने पता चलाकर शशीको खूब पिटवाया और सूर्यका धन वापिस दिलवा दिया। पिटते पिटते शशी मर गया जिससे वह चन्द्ररुचि नामका असुर हुआ है और सूर्य मर कर मैं हिरण्य नामका देव हुआ हूं। पूर्वभवके वैरसे ही चन्द्ररुचि ने हरणकर आपके लिये कष्ट दिया है और मैं उपकारसे कृतज्ञ होकर आपका मित्र हुआ हूँ" इतना कहकर वह देव अन्तर्हित हो गया। वहांसे कुमार थोड़ा ही चला था कि वह विशाल अटवी जिसके कि अन्तका पता नहीं चलता था समाप्त हो गई । युवराजने यह सब उस देवका ही प्रभाव समझा। अटवीसे निकल कर यह पासके किसी देशमें पहुंचा। वहां उसने देखा कि समीपवर्ती नगरसे बहुतसे पौरजन घबड़ाये हुए भागे जा रहे हैं। जाननेकी इच्छासे उसने किसी मनुष्यसे भागनेका कारण पूछा। उत्तरमें मनुष्यने कहा-'क्या आकाशसे पड़ रहे हो, जो अपरिचितसे बनकर पूछते हो।' तब युवराजने कहा-'भाई ! मैं परदेशी आदमी हूं, मुझे यहांका कुछ भी हाल मालूम नहीं है । अनुचित न हो तो बतलानेका कष्ट कीजिये।' युवराजकी नम्र और मधुर वाणीसे प्रसन्न होकर मनुष्यने कहा-'तो, सुनिये-यह अरिंजय नामका देश है, यह सामनेका नगर इसकी राजधानी है, इसका नाम विपुल है । यहां जयवर्मा नामके राजा राज्य करते हैं उनकी स्त्रीका नाम जयश्री है । इन दोनों के एक शशिप्रभा नामकी लड़की है जो सौन्दर्य सागरमें तैरती हुई सी जान पड़ती है। किसी देशके महेन्द्र नामके राजाने महाराज जयवर्मासे शशिप्रभा की याचना की। जयवर्मा उसके साथ शशिप्रभाकी शादी करने के लिये तैयार