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* चौबीस तीर्थकर पुराण *
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हो गये पर एक निमत्त ज्ञानीने 'महेन्द्र अल्पायु है' कहकर उन्हें वैसा करनेसे रोक दिया। राजा महेन्द्रको यह बात सह्य नहीं हुई इसलिये वह पड़ी भारी सेनाको लेकर महाराज जयवर्मासे लड़कर जबरदस्ती शशिप्रभाको हरनेके लिये आया है। उसकी सेनाने विपुलपुरको चारों ओरसे घेर लिया है । जयवर्माके पास उतनी सेना नहीं है जिससे वह महेन्द्रका मुकाबिला कर सके। उसके सैनिक नगरमें ऊधम मचा रहे हैं इसलिये समस्त पुरवासी डर कर वाहिर भागे जा रहे हैं। अब वश, मुझे बहुत दूर जाना है" इतना कह कर वह मनुष्य भाग गया। युवराज जब कुतूहल पूर्वक विशाल पुरकी सीमा पर पहुंचे और उसके भीतर जाने लगे तब राजा महेन्द्रके सैनिकोंने उन्हें भीतर जानेसे रोका जिससे उन्हें क्रोध आ गया। युवराजने वहीं पर किसी एकके हाथसे धनुषवाण छीनकर राजा महेन्द्रसिंहसे युद्ध करना प्रारम्भ कर दिया और थोड़ी देर में उसे धराशायी बना दिया। शत्रुकी मृत्यु सुनकर जय वर्मा बहुत ही प्रसन्न हुए। वे कुमारको बड़े आदर सत्कारसे अपने घर लिया ले गये। वहां शशि प्रभा युवराज पर आसक्त हो गई। राजा जय वर्माको जब इस बातका पता चला तब उसने हर्षपूर्वक युवराजके साथ शशिप्रभाका विवाह करना स्वीकार कर लिया। युवराज कुछ दिनों तक वहीं रहे आये। विजयाई गिरिकी दक्षिण श्रेणीमें एक आदित्य नामका नगर है जो अपनी शोभासे आदित्य-विमान सूर्य-विमानको भी जीतता है। उसमें धरणी-ध्वज 'नामका विद्याधर राज्य करता था। धरणीध्वजने अपने पौरुषसे समस्त विद्याधरोंको अपने आधीन बना लिया था। एक दिन वह राजसभामें बैठा हुआ था कि वहां पर एक क्षुल्लकजी आये राजाने उनका खड़े होकर स्वागत किया
और उन्हें ऊंचे आसन पर बैठाया। बातचीत होते होते क्षुल्लकजीने कहा कि 'अरिंजय देशके विपुल नगरके राजा जयवर्माके एक शशिप्रभा नामकी कन्या है। जिसके साथ उसका विवाह होगा वह तुम्हें मारकर भरत-क्षेत्रका पालन करेगा। क्षुल्लकके वचन सुनकर राजा धरणीध्वजको बहुत दुःख हुआ। जब क्षुल्लकजी चले गये तब उसने कुछ मन्त्रियोंकी सलाहसे विद्याधरोंकी बड़ी भारी सेनाके साथ जाकर विपुल नगरको घेर लिया और वहांके राजा जय
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