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* चौबीस तीर पुराण
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किसी समय घनरथ नामका राजा राज्य करता था। उसकी महारानीका नाम मनोहरा था। उन दोनोंके मेघरथ और दृढ़रथ नामके दो-पुत्र थे। उनमें मेघरथ पड़ा और हदरथ छोटा भाई था। वे दोनों भाई एक दूसरेसे बहुत प्यार करते थे, एकके बिना दूसरेको अच्छा नहीं लगता था। वे सूर्य और चन्द्रमा की तरह शोभित होते थे। उन दोनोंके पराक्रम, बुद्धि, विनय, प्रताप, क्षमा, सत्य तथा त्याग आदि अनेक गुण संभावसे. ही प्रकट हुथे थे। __ जब दोनों भाई पूर्ण तरुण हो गये तब महाराज धनरथने बड़े पुत्र मेघरथका विवाह प्रियमित्रा और मनोरमाके साथ तथा इंदरथका सुमतिके साथ किया।नव बन्धुओंके साथ अनेक क्रीडा.कौतुक करते हये दोनों भाई अपना समय सुखसे बिताने लगे। पाठकों को यह जानकर हर्ष होगा कि इनमेंसे पड़ा भाई मेघरथ इस भवसे तीसरे भवमें भगवान् शान्तिनाथ होकर संसार का कल्याण करेगा और छोटा भाई दृढ़रथ तीसरे भवमें चक्रायुध नामका उसी का भाई होगा जो कि श्रीशांतिनाथका गणधर होकर मोक्ष प्राप्त करेगा।
कुछ समय बाद मेघरथकी प्रिय मित्रा भार्यासे नन्दि वर्धन नामका पुत्र हुआ और दृढ़रथकी सुमति देवीसे वरसेन नामका पुत्र हुआ। इस प्रकार पुत्र पौत्र आदि सुख सामग्रीसे राजा घनरथ इन्द्रकी तरह शोभायमान होते थे। एक दिन महाराज घनरथ राज सभामें बैठे हुये थे, उनके दोनों पुत्रभी उन्हीं के पास बैठे थे कि इतनेमें प्रिय मित्राकी. सुषेणा- नामकी दासी एक घनतुड नामका मुर्गा लाई और राजासे कहने लगी कि जिसका मुर्गा इसे लड़ाई में जीत लेगा मैं उसे एक हजार दीनार दूंगी। यह सुनकर दृढ़रथकी स्त्री सुमतिकी काचमा नामकी दासी उसके साथ लड़ानेके लिये एक बज्रान्ड नामका मुर्गा लाई । धनतुण्ड और बज्रतुण्डमें खुलकर लड़ाई होने लगी। कभी सुषेणाका मुर्गा काञ्चनाके मुर्गाको पीछे हटा देता और कभी कांचनाका मुर्गा सुषेणाके मुर्गाको पीछे हटा देता था। जिससे दोनों दलके मनुष्य बारी बारी से हर्षकी तालियां पीटते थे दोनों मुर्गाओं के बलबीर्यसे चकित होकर राजा घनरथने मेघरथसे पूछा कि इन मुर्गाओं में यह बल कहांसे आया ? राजकुमार मेघरथको अवधि ज्ञान था इसलिये वह शीघ्र ही सोचकर पिताके प्रश्नका नीचे
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