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चौबीस तोथक्कर पुराण *
कर बालक पैदा होगा । ये सोलह स्वप्न उसीकी विभूति बतला रहे हैं।' राजा समुद्र विजय रानीके लिये स्वप्नोंका फल बतलाकर निवृत्त ही हुए थे कि इतने में वहाँपर जयजयकार करते हुऐ समस्त देव आ पहुँचे । देवोंने गर्भ कल्याणक का उत्सव किया तथा उत्तमोत्तम वस्त्राभूषणोंसे दम्पतीका खूब सत्कार किया।
तदनन्तर नौ माह बाद शिवा देवीने श्रावण शुक्ला षष्ठीके दिन चित्रा नक्षत्र में पुत्र रत्न उत्पन्न किया। उसी समय सौ धर्म आदि इन्द्र तथा समस्त देवोंने मेरु पर्वतपर ले जाकर बालकका जन्माभिषेक किया। इन्द्राणीने अङ्ग पोंछकर बालोचित उत्तम उत्तम आभूषण पहिनाये। इन्द्रने मधुर शब्दों में स्तुति की और स्वामी नेमिनाथ नाम रक्खा। अभिषेककी क्रिया समाप्त कर इन्द्र भगवान् नेमिनाथको द्वारिकापुरी ले आया और उन्हें उनकी माताके लिये सौंप दिया। उस समय द्वारिकापुरीमें घर घर अनेक उत्सव किये जा रहे थे। जन्म कल्याणकका उत्सव समाप्त कर देव लोग अपने अपने स्थानोंपर चले गये । बालक नेमिनाथका राज परिवारमें उचित रूपसे लालन पालन होने लगा। वे अपनी मधुर चेष्टाओंसे सभीको हर्षित किया करते थे। द्वितीयाके चन्द्रमा की तरह वे दिन प्रतिदिन बढ़ने लगे।
भगवान् नमिनाथके मोक्ष जानेके बाद पांच लाख वर्ष बीत जानेपर स्वामी नेमिनाथ हुए थे। उनकी आयु भी इसीमें शामिल है। उनकी आयुका प्रमाण एक हजार वर्षका था । शरीरकी ऊंचाई दश धनुष और वर्ण मयूरकी ग्रीवाके समान नीला था । यद्यपि उस समय द्वारावती-द्वारिकाके राजा समुद्र विजय थे पर उनके नेमिनाथके पहले कोई सन्तान नहीं हुई थी और अवस्था प्रायः ढल चकी थी इसलिये उन्होंने राज्यका बहुत भार अपने छोटे भाई वसुदेवके लघु पुत्र श्रीकृष्णके लिये सौंप दिया था। कृष्ण बहुत ही होनहार पुरुष थे इसलिये उनपर समस्त यादवोंकी नजर लगी हुई थी। सब कोई उन्हें प्यार
और श्रद्धाकी दृष्टिसे देखते थे। भगवान् नेमिनाथ भी अपने चचेरे बड़े भाई श्रीकृष्णके साथ कम प्रेम नहीं करते थे।
एक दिन मगध देशके कई वैश्य पुत्र समुद्र मार्गसे रास्ता भूलकर द्वारिकापुरीमें आ पहुंचे। वहांकी विभूति देखकर उन्हें बहुत ही आश्चर्य हुआ।