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* चौथोम नोधकर पुराण
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अनेक जगह विहार करनेके बाद वे आयुके अन्तिम समयमें सम्मेद शिखा पर पहुंचे। यहांसे प्रतिमा योग धारण कर अचल हो बैठ गये । उस समय उनका दिर ध्वनि वगैरह वाय वैभव लुप्त हो गया था। वे हर एक तरहके आत्म ध्यान में लीन हो गये थे। धोरं धार उन्होंने योगोंकी प्रवृत्तिको भी रोक लिया था जिससे उनके नवोन कर्माका आरव बिल्कुल बन्द हो गया और शुक्ल ध्यानके प्रतापसे सत्तामें स्थित अघाति चतुष्क की पचासी प्रकृतियां धीरे धीरे नष्ट हो गई। जिससे वे वैसाख शुक्ल पठीके दिन पुनर्वसु नक्षत्रमें पान:कालके समय मुक्ति-मन्दिरमें जा पधारे । देवोंने आकर उनके निर्वाण कल्याणक का महोत्सव किया। आचार्य गुणभद्र लिखते हैं कि जो पहले विदेहक्षेत्रके रनसंचय नगरमं महायल नामके राजा हुए फिर विजय अनुत्तरमें अहमिन्द्र हुए और अन्तमें साकेत-पति अभिनन्दन नामक राजा हुए वे अभिनन्दन स्वामी तुम सबकी रक्षा करें।
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भगवान सुमतिनाथ रिपुनृप यम दण्डः पुण्डरीकिण्यधीशो
हरिरिव रतिषेणी वैजयन्तेऽहमिन्द्रः। सुमति रमित लक्ष्मीस्तीर्थकृद्यःकृतार्थः
सकलगुणसमृद्धोवः स सिद्धिं विदध्यात् ।। आचार्य गुणभद्र "जो शत्रुरूप राजाओंके लिये यमराजके दण्डके समान अथवा हरि-इन्द्र के समान पुण्डरीकिणी नगरीके राजा रतिषेण हुए, फिर वैजयन्त विमानमें अहमिद हुए वे अपार लक्ष्मीके धारक, कृतकृत्य, सब गुणोंसे सम्पन्न भगवान् सुमतिनाथ तीर्थकर तुम सबकी सिद्धि करें-तुम्हारे मनोरथ पूर्ण करें।
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