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चौबीस तोर्थङ्कर पुराण *
अब कुछ वहाँका वर्णन सुनिये जहां आगे चलकर उक्त अहमिन्द्र जन्म धारण करेंगे ।
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[ २ ] वर्तमान परिचय
पाठकगण जम्बूद्वीप भरत क्षेत्रकी जिस अयोध्यासे परिचित होते आ रहें हैं उसीमें किसी समय मेघरथ नामके राजा राज्य करते थे उनकी महारानीका नाम मंगला था । मंगला सचमुच में मंगला ही थी । महाराज मेघरथके सर्व मंगल मंगलाके ही आधीन थे। ऊपर जिस अहमिन्द्रका कथन कर आये हैं उसकी वहांकी आयु जब छह माहकी बाकी रह गई थी तभी से महाराज मेघरथके घरपर देवोंने रत्नोंकी वर्षा करनी शुरू कर दी थी । श्रावण शुक्ला द्वितीयाके दिन मघा नक्षत्रमें मंगला देवीने रात्रिके पिछले भागमें ऐरावत आदि सोलह स्वप्न देखे और फिर मुंहमें प्रवेश करता हुआ एक हाथी देखा । सवेरा होते ही उसने प्राणनाथसे स्वप्नोंका फल पूछा तब उन्होंने अवधि ज्ञानसे जानकर कहा कि 'आज तुम्हारे गर्भ में तीर्थंकर बालकने अवतार लिया हैसोलह स्वप्न उसीकी विभूतिके परिचायक हैं' पतिके मुखसे स्वप्नोंका फल सुनकर और भावी पुत्रके सुविशाल वैभवका स्मरण विवार करके वह बहुत ही सुखी होती थी । उसी दिन देवोंने आकर राजा रानीका खूब यश गाया, खूब उत्सव मनाये | इन्द्रकी आज्ञासे सुरकुमारियां महादेवो मंगलाकी तरह तरहकी शुश्रूषा करती थीं और प्रमोदमयी वचनोंसे उसका मन बहलाये रहती थीं ।
नौ महीना बाद चैत्र शुक्ल एकादशीके दिन मघा नक्षत्रमें महारानीने पुत्र उत्पन्न किया । पुत्र उत्पन्न होते ही तीनों लोकोंमें आनन्द छा गया । सबके हृदय आनन्दसे उल्लसित हो उठे, क्षण एक के लिये नारकी भी मार काट का दुःख भूल गये, भवनवासी देवोंके भवनों में अपने आप शंख बज उठे, व्यन्तरोंके मन्दिरोंमें भेरीकी आवाज गूंजने लगी, ज्योतिषियोंके विमानों में सिंहनाद हुआ तथा कल्पवासी देवोंके विमानों में घन्टेकी आवाज फैल गई ।